स्त्री-मन के अंतर्द्वंद्वों का मुखर किरदार
प्रगति गुप्ता
समाज के विभिन्न पहलुओं से जुड़े कथानकों में बुनी हुई सात कहानियों का संग्रह है ‘किरदार’। संकलन की पहली कहानी ‘एक ढोलो दूजी मरवण… तीजो कसूमल रंग’ एक ओर दो साधारण किरदारों के अव्यक्त प्रेम का चित्रण है, जिसने संस्कारों की चादर ओढ़कर नैतिकता के तहत होंठों को सिल रखा है। दूसरी ओर आधुनिक उच्च-मध्य वर्गीय जोड़ा है जहां सब व्यक्त होने पर भी एक अधूरेपन का एहसास उनके साथ-साथ चल रहा है। उन दोनों किरदारों का अपने प्रेम में लघुता का अनुभव होना इस कहानी की विशेषता है।
दूसरी कहानी ‘आर्किड’ मणिपुर में सैन्य शासन के दौरान सेना और स्थानीय निवासियों के बीच तनावों और जोखिमों की उस सच्चाई का चित्रण है, जहां रिश्ते भी उसकी चपेट में आने से छूट नहीं पाते। सेना के डॉ. वाशी और स्थानीय नागरिक प्रिश्का का रिश्ता सरल होते हुए भी किस तरह स्थानीय परिस्थितियों के तनावों के बीच झूलता है, उसका बढ़िया चित्रण है।
संग्रह की तीसरी कहानी ‘लापता पीली तितली’ सामाजिक शोषण की भयावह परिणतियों पर गहरी चोट का बहुत संवेदनशील उदाहरण सिद्ध होती हुई प्रतीत होती है। सभ्यता की आड़ में मासूमियत के साथ खिलवाड़ समाज में हमेशा से ही एक ज्वलंत विषय रहा है।
‘ब्लैक होल’ वर्गविभेद से जुड़ी, कहने को अल्हड़ पर गहरे प्रेम से जुड़ी सोचनीय कहानी है। पिता और बेटी के संबंधों में विचारों के उतार-चढ़ाव की यह कहानी पिता को सोचने पर मजबूर करती है कि नई पीढ़ी भी बहुत नि:स्वार्थ और संवेदनशील हो सकती है। कभी-कभी पूर्वस्थापित धारणाएं व्यक्ति को कितना आत्मग्लानि से भर सकती हैं, इस कहानी की विशेषता है।
कन्या भ्रूण हत्या से जुड़ी ‘ठगिनी’ कहानी सिर्फ मरुस्थल की ही कहानी न होकर देश के विभिन्न स्थानों की निर्मम मानसिकता की अभिव्यक्ति है। महानगरों की यांत्रिक असामान्य ज़िन्दगी का चित्रण है ‘समुद्री घोड़ा’।
मनीषा कुलश्रेष्ठ के इस संकलन की सबसे आखिरी व प्रमुख कहानी है ‘किरदार’। स्त्री-मन के अंदर ही अंदर सतत् शांत चलने वाले उन अन्तर्द्वंद्वों का चित्रण है किरदार, जहां शून्य व अकेलापन भीतर-भीतर इस क़दर बिखरा है कि जिसकी गहराई पाठक पढ़कर ही माप पाएंगे। इस शून्य की परिणति उन्हें अनायास ही बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देगी।
0पुस्तक : किरदार 0लेखिका : मनीषा कुलश्रेष्ठ 0प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स, दिल्ली 0पृष्ठ संख्या : 141 0मूल्य : रु. 195