रागिनी पर मास्टर नेकीराम की छाप
राजकिशन नैन
यूं तो हरियाणा सदियों से सांग और सांग के शौकीनों का गढ़ रहा है, पर सर्वाधिक नामी-गिरामी सांगी यहां बीसवीं शताब्दी में हुए हैं। भारत समेत रंगून, नेपाल, भूटान और काबुल तक हरियाणावी सांग की धूम मचाने वाले हरियाणवी लोकमंच के गौरव मास्टर नेकीराम, इसी सदी में गांव जैतड़ावास (रेवाड़ी) में जन्मे और इसी सदी में इन्होंने सांग के जरिये ख्याति बटोरी। हिंदी पट्टी के राज्यों में मिथक के नायकों की तरह जो ख्याति गोरड़ के हरदेवा स्वामी, समाल के नेतराम, निंदाणा के रविस्वरूप एवं धनपत सिंह, जांडली के मुंशीराम, सिसाणा के बाजे भगत, सुनारियां के जमुआ मीर, बखेता के सेवा जोगी, भऊ झोलरी के पंडित हरिराम और पाणची के पंडित मांगेराम को मिली, उतनी शोहरत तो मास्टर नेकीराम के हिस्से में नहीं आयी,परंतु मास्टर नेकीराम ने जो छाप छोड़ी है, वह रागिनी के चित्त पर सदैव विद्यमान रहेगी। मास्टर नेकीराम की रचनाओं को यदि अपने जमाने की घटनाओं, सामाजिक स्थितियों, अनुभूतियों और मानवीय हर्ष-विषाद की उत्कट चित्रात्मक अभिव्यक्ति कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। हीर वाट्टी, मेवाती, बांगरू और जाटू भाषा के लोक प्रचलित शब्दों, मुहावरों और उक्तियों को जिस समझबूझ के साथ नेकीराम ने बरता है, उससे अंदाजा होता है कि वे इन भाषाओं में पारंगत थे। निंदाणा वासी धनपत सिंह सांगी ने मास्टर नेकीराम की रागनियों पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एक बार इस लेखक से कहा था कि ‘नेकीराम’ की रागनियों में एक खास तरह का सम्मोहन है, जो लोगों को बांधने में पूर्णतया सक्षम है।’
लोक में सांग की जितनी पहचान है, हरियाणा के साहित्यिक जगत में सांग की उतनी ही बेकद्री है। साहित्यिक दुनिया ने लंबे समय तक सांग और सांगियों की घोर उपेक्षा की है। बीसवीं सदी के सैकड़ों सांगी अपने-अपने फन का जौहर दिखाकर दुनिया से रु$खसत हो गए, लेकिन आज वे सब गुमनाम हैं। इन तमाम सांगिनयों ने अपनी प्रतिभा के बल पर सांग-कला को एक सर्वमान्य जगह दिलायी थी। मास्टर नेकीराम भी उन्हीं की तरह गुमनामी के अंधेरे में खो गए होते, किंतु डा. शिवताज सिंह ने मास्टरजी की शख़्िसयत और सांग-यात्रा का स्मरण करते हुए ‘हरियाणवी लोक काव्य एवं नाट्य के गौरव मास्टर नेकीराम’ नामक पुस्तक की सृजना कर डाली। इस महत्वपूर्ण कृति को डा. साहब ने उन्नीस अध्यायों में बांटा।
किताब बताती है कि मास्टर नेकीराम परिवार की तीन पीढिय़ों ने सांग के उत्कृर्ष हेतु अपना जीवन होम कर दिया। 2 फरवरी, सन् 1958 ई. को नेकीराम के पिता मूलचंद सांग करते-करते संसार से गए। 10 जून, सन् 1996 ई. के दिन मास्टर नेकीराम ने चोला छोड़ा और 1 फरवरी, सन् 2003 ई. को मास्टर जी के सांगी पुत्त राजेंद्र सिंह ने इहलोक गमन किया। हरियाणा में ऐसे परिवार विरले हैं, जिनकी तीन पीढिय़ों ने सांग के क्षेत्र में सिक्का जमाया है। गायन का नियमित रियाज इस परिवार का दैनंदिन आध्यात्मिक कर्म था। बेटा, बाप और दादा तीनों ‘गले’ की बजाय ‘स्वर’ को साधने में निमग्न रहते थे। घर में हरदम सांग-विमर्श की गुंजाइश बनी रहती थी। पुस्तक के एक-एक पन्ने पर मास्टर नेकीराम के सांग अवदान को रेखांकित किया गया है। कथ्य के जरिये पाठकों को मास्टर नेकीराम के सांगों की यात्रा कराने की लेखक की इच्छा ने कृति को विशेष बना दिया है। इस किताब में मास्टर नेकीराम के व्यक्तित्व के साथ-साथ उन द्वारा रचित उन दस सांगों से पाठकों का आमना-सामना होता है, जिनका मंचन किसी एक गांव या नगर तक महदूद नहीं था। तमाम सांग पाठक को एक सुखद अनुभूति कराते हुए आगे बढ़ते हैं। धनपत सिंह, सेवा जोगी, चंद्रबादी और पंडित मांगेराम की तरह नेकीराम ने नये सांग नहीं रचे। इन्होंने केवल अपने पूर्ववर्तियों का अनुसरण किया और सांग भी थोड़े ही बनाये। लेकिन ये सांग समकालीनों की तुलना में काफी साफ-सुथरे हैं। अश्लीलता इनको छू तक नहीं पायी है। नेकीराम की सांग एवं काव्य प्रतिभा को साहित्येतिहास में जगह दिलाने के लिए डा. शिवराज, डा. एम.एल. रंगा, रतन कुमार और आलोक भांडोरिया के परिजनों ने जो सत्कर्म किया है, वह अनुकरणीय है। इस किताब में मोटी कमी यह खटकती है कि ‘शब्दार्थ’ खंड में 250 हरियाणवी शब्दों में से 70 के अर्थ गलत हैं। वर्तनी की अशुद्धियां भी बहुत ज्यादा हैं, विशेषत: हरियाणवी की।
पुस्तक : हरियाणवी लोक काव्य एवं नाट्य के गौरव मास्टर नेकीराम, लेखक : डॉ. शिवताज सिंह, प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाउस, धामाणी मार्केट, जयपुर-302003, संस्करण : 2012, पृष्ठï संख्या : 384, मूल्य : रुपये 500.