भूले-बिसरे यथार्थ को प्रदर्शित करती कहानियां
पुस्तक समीक्षा
डॉ. मुक्ता
चन्दन पाण्डेय समकालीन कथाकार हैं। ‘भूलना’ व ‘इश्कफरेब’ कहानी संग्रहों के माध्यम से वे पाठकों से रू-ब-रू हो चुके हैं। जंक्शन उनका तीसरा कहानी संग्रह है।
जंक्शन की कहानियों में विषय की विविधता है और उनकी शैली संस्मरणात्मक है। वे भूली-बिसरी यादों के चित्र खींचने में माहिर हैं। उन्होंने छोटी-छोटी घटनाओं का विवरण अच्छे ढंग से दिया है। जंक्शन में ग्यारह कहानियां हैं। ज़मीन अपनी तो थी, मित्र की उदासी, जंक्शन, नया कवि मुहर बड़ी विस्तृत कहानियां हैं और नीम का पौधा एवं ऐब भी करने का हुनर चाहिए, समय के दो भाई, वीराने का कोतवाल समयानुकूल छोटी कहानियां हैं।
कुणाल सिंह ने इन्हें समकालीन कहानीकार की संज्ञा देते हुए ‘जंक्शन’ कहानी संग्रह के बारे में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है। ‘इस संग्रह की कई कहानियां आपको चौंकाएंगी। अपने नयेपन से नहीं, …लेखक ने आपके देखे-सुने व बिसरा दिए यथार्थ को पुन: नये ढंग से देखा व दिखाया है।’
जंक्शन की पहली कहानी ‘ज़मीन अपनी तो थी’ में अनिकेत का लिफ्ट मिलने के पश्चात्ï प्रसन्नता का भाव किस प्रकार पल भर में उसे आशंकाओं से भर देता है, जो बहुत शीघ्र ही सत्य का रूप धारण कर लेती हैं। लकी और मेजर ड्राइवर का सारा रास्ता उससे परिचय प्राप्त करने के निमित्त से वही प्रश्न पूछकर परेशान करना उसकी भावनाओं को झिंझोड़ कर रख देता है। परिचय कार्ड देने के पश्चात् वोटर कार्ड, पैन कार्ड, फिर कंपनी का आई. कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस मांगना और परिचय पत्रों को शीशा खोल गाड़ी से बाहर फेंक देना उसके मनोभावों को आहत कर देता है। लकी व मेजर का अनिकेत को शराब पीने का अनुरोध करना, ऊंची आवाज़ में गाने सुनना, फोन आने वाली आवाज़ ऊंची करना, मां व उसकी गर्ल फ्रेंड से उसका परिचय कन्फर्म करना और उसके तनिक ना-नुकर करने पर उसे मोटी रस्सी से बांधना, उसका अंगूठा तोड़ देना, उसे कराहते हुए देख सुकून प्राप्त करना उनके कहर को दर्शाता है, जो उसे आतंकवादी समझ अनिकेत से उसके एटीएम कार्ड, लेपटॉप आदि सब कुछ छीन लेते हैं और अंत में हारकर वह समर्पण कर देता है।
मित्र की उदासी दो दोस्तों के बचपन की स्मृतियों का झरोखा है। ‘जंक्शन’ जिस पर इस कहानी संग्रह का नामकरण किया गया है, मनई बाबा के चौर बंधवाने, उनके किस्से बांचने की कहानी है। शाहपुर जंक्शन से बनारस तक की रेल यात्रा में मिलने वाले यात्रियों से गुफ्तगू, गाड़ी का घंटे भर तक रुके रहना, भर्ती के लिए जाने वाले युवकों की परेशानी, भीषण गर्मी का उनके धैर्य की परीक्षा लेना, एक पुरुष का सुंदर स्त्री के साथ यात्रा करना, अजनबी व्यक्ति का सीट मांगना तथा उस पुरुष को पीटना प्रारंभ करना, सभी यात्रियों का उसमें योगदान देना तथा मारकर ही दम लेना, स्त्री का चीत्कार करना हृदय को द्रवित कर देता है। हर संकट की घड़ी में वे लोग मनई बाबा के नारे लगाते हैं। बैंक का गांव से बंद करने पर होने वाले हंगामों का लेखक ने सुंदर चित्र खींचा है। नया और कवि कहानियां लीक से हटकर हैं। ‘मुहर’, ‘नीम का पौधा’, ‘ऐब भी करने का हुनर चाहिए’ द्वारा शैली के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है। समय के दो भाई द्वारा दो शराबी भाइयों की मानसिकता पर प्रकाश डाला गया है, जो पूरे गांव को जलाकर राख कर देते हैं कि कहीं लोग उनकी शराब न पी जाएं। लक्ष्य शतक की नारा प्रकाश की डायरी के वे जले हुए पृष्ठ हैं, जो सुनहरे कूड़ेदान में मिले, अनूठी कथा है।
जंक्शन की कहानियों की भाषा आंचलिक है। इस संकलन की कुछ कहानियों का आकार विस्तृत है, जो आधुनिक युग की व्यस्तताओं को देखते हुए अखरती हैं। कुल मिलाकर जंक्शन समकालीन समाज का चित्र उकेरता है, उसका लेखाजोखा हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है।
०पुस्तक : जंक्शन ०लेखक : चंदन पाण्डेय ०प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, लोदी रोड, नयी दिल्ली-110003 ०पृष्ठ संख्या : 120 ०मूल्य : रुपये 130.