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पंजाब की हिन्दी कविता पर मंथन

पुस्तक समीक्षा फूलचंद मानव ‘पंजाब में रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास’, प्रोफेसर मनमोहन सहगल की महत्वाकांक्षी कृति है। इसके पश्चात आई ‘पंजाब की समकालीन हिन्दी कविता’ एक स्रोत कृति के रूप में, सफल काम है। कथा, उपन्यास आदि के क्षेत्र में पंजाब के ठोस अवदान को भारत के हिंदी विद्वानों ने ही नहीं, हिंदोत्तर समाज […]
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पुस्तक समीक्षा

फूलचंद मानव
‘पंजाब में रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास’, प्रोफेसर मनमोहन सहगल की महत्वाकांक्षी कृति है। इसके पश्चात आई ‘पंजाब की समकालीन हिन्दी कविता’ एक स्रोत कृति के रूप में, सफल काम है। कथा, उपन्यास आदि के क्षेत्र में पंजाब के ठोस अवदान को भारत के हिंदी विद्वानों ने ही नहीं, हिंदोत्तर समाज ने भी खूब सराहा है। पंजाब की हिंदी कविता का सलक्ष्य अध्ययन इधर उस दृष्िट से गंभीरतापूर्वक कम ही हो पाया जिसकी जरूरत इधर बनी रही है। डॉ. हुकुमचंद राजपाल खोजार्थी विद्वान, आलोचक-पत्रवाचक ही नहीं, पत्रिका-संपादक भी हैं और हाल-फिलहाल तो उनका दखल आज की हिंदी कविता में भी है। ऐसा प्रस्तुत कृति भी दर्शा रही है। भाषा विभाग पंजाब और आकाशवाणी जालंधर के परामर्शदाता के अलावा हिंदी और पंजाबी के आलोचक भी हैं डॉ. हुकुमचंद।
लगभग आठ अध्यायों में लिखी इस वृहद कृति में डॉ. साहिब का पंजाब की हिंदी कविता पर मंथन दर्ज है। दर्जनों युवा-युवतियां भी इस ग्रंथ में दर्ज हैं। कुछ नाम तो यहां पहली बार पढ़ रहे हैं। पंजाबी रचनाकारों के नाम यहां पढ़कर अच्छा ही लगा कि हिंदी में भी ये नाम पाने, स्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
पंजाब की समकालीन हिंदी कविता, चर्चित कवि, महिला हस्ताक्षर, विशेष चर्चित कवि, हिंदी ग़ज़ल लेखन में सांस्कृतिक पक्षधरता, समकालीन हिंदी कविता की पृष्ठभूमि पंजाब के हिंदी साहित्य की युगीन परिस्थितियां और ‘नयी कविता तथा समकालीन कविता’ जैसे अध्यायों में डॉ. राजपाल ने दोहराव से भी काम लिया है।
जसवीर चावला, राजेंद्र टोकी, लाल्टू, वसंत परिहार, कुमार विकल आदि राष्ट्रीय स्तर के कवियों पर राजपाल स्वतंत्र अध्याय देकर मुख्यधारा के रचनाकारों में इनका स्थान निर्धारित कर सकते थे। बहरहाल इन सबकी सारी काव्यकृतियों में से गुजरकर ही ऐसा संभव हो सकता है क्योंकि पंजाब की सन‍् 1947 या साठ के बाद की हिंदी कविता पर कहीं कुछ स्तरीय ठोस नहीं मिल रहा। ऐसे में आगे काम करने के लिए हुकमचंद की प्रस्तुत कृति रास्ता तो दिखा ही रही है। काव्य संवेदना तक उतरने के लिए गहन चिंतन, मंथन और मौलिक सोच में से गुजरना होता है। फिर भी केंद्रीय हिंदी निदेशालय के आर्थिक सहयोग से छपी पुस्तक आज पाठकोपयोगी है।

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0पुस्तक : पंजाब की समकालीन हिंदी कविता 0लेखक :  डॉ. हुकुमचंद राजपाल 0प्रकाशक : बिटवीन लाइन्स, पटियाला 0पृष्ठ संख्या : 456 0मूल्य : रुपये 180.

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