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स्वर्ग के लड्डू

कहानी कंचनपुर गांव के सेठ के पास काफी धन दौलत थी। उसके पास कई खेत और बगीचे थे, जिनसे हर सीजन में अच्छी आमदनी हुआ करती। सेठ के एक पुत्र था, जिसका पढ़ाई-लिखाई में मन कम लगता और इधर-उधर बैठकर हंसी-मजाक और गप्पें मारा करता। एक दिन सेठ ने अपने पुत्र से कहा, ‘राजू। अब […]
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कहानी

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चित्रांकन : संदीप जोशी

कंचनपुर गांव के सेठ के पास काफी धन दौलत थी। उसके पास कई खेत और बगीचे थे, जिनसे हर सीजन में अच्छी आमदनी हुआ करती। सेठ के एक पुत्र था, जिसका पढ़ाई-लिखाई में मन कम लगता और इधर-उधर बैठकर हंसी-मजाक और गप्पें मारा करता। एक दिन सेठ ने अपने पुत्र से कहा, ‘राजू। अब तुम बच्चे नहीं, बड़े हो गये हो, अच्छा-सा काम संभाल लो ताकि मैं तुम्हारी शादी कर सकूं।’
इस पर उसने कहा, ‘पिताजी। अब मैं बगीचों की देखभाल करूंगा।’ सुनकर वे प्रसन्न हुए।
अब राजू प्रतिदिन बगीचों पर जाने लगा और वहां कड़ी निगरानी रखने लगा। जब गर्मी का मौसम आया तो आम के बगीचे के पेड़ों में खूब आम लगे। प्रतिदिन सुबह-सुबह वह आम के पेड़ों को बड़ी तरकीब से देखता। कहीं किसी ने आम तो नहीं चुरा लिये? ऐसे ही एक बार वह सुबह-सुबह बगीचे में आया। देखा तीन पेड़ों से आम गायब हैं, आखिर आम किसने चुराये? पता लगाना संभव नहीं था। उसने मन में सोचा यदि कल सुबह जल्दी आया जाये तो पता चल सकता है कौन चोर आम चुरा रहा है?
अपनी योजना के मुताबिक वह भोर में बगीचे में पहुंचा। एक सफेद हाथी सूंड उठाकर पेड़ों से आम गटक रहा था। कई आम खाने के बाद जब उसका पेट भर गया तो उसने अपनी सूंड घुमाई और आकाश की ओर उड़ चला। हाथी को देखकर उसने मन में सोचा-अरे, यह तो साक्षात स्वर्ग का ऐरावत हाथी है, इसकी सवारी कर स्वर्ग की यात्रा की जा सकती है। बस यही सोचकर वह घर चला गया। दूसरे दिन भोर में बगीचे में आया तो वही सफेद हाथी पेड़ों से आम खाने में तल्लीन था, मौका देखकर उसने हाथी की पूंछ पकड़ ली। जब हाथी का आमों से पेट भर गया तो उसने स्वर्ग की ओर उड़ान भरी। हाथी की पूंछ के सहारे राजू भी स्वर्ग में जा पहुंचा। स्वर्ग का अजीब नजारा देखकर वह दंग रह गया। जगह-जगह खाने-पीने की चीजों के ढेर लगे थे, तरह-तरह के पकवान और फल सोने-चांदी के पात्रों में रखे हुए थे। उसने कई दिन स्वर्ग में ठाट से बिताये। जब स्वर्ग से मन उकता गया तो हाथी के पास जाकर पूंछ पकड़कर अपने आम के बगीचे में आ गया।
घर पहुंचते ही पिता ने पूछा, ‘कहां गये थे?’ तो उसने हाथी और स्वर्ग वाली पूरी बात बता दी। पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि सेठजी का पुत्र स्वर्ग का आनंद लेकर आया है। इस खबर से कई लोग स्वर्ग जाने को उत्सुक हो गये और राजू के पास आकर बोले, ‘राजू भैया। हमें भी स्वर्ग की यात्रा करा दो।’ राजू अपने गांव के लोगों से बोला, ‘कल भोर में आम के बगीचे में आ जाना, मैं तुम्हारे साथ एक बार फिर से स्वर्ग की सैर करने चलूंगा और तुम्हें वहां तरह-तरह के पकवान भी खिलाऊंगा।’
दूसरे दिन भोर में 70-80 आदमी आम के बगीचे में पहुंचे। राजू पहले से ही वहां मौजूद था। तभी आसमान से सफेद हाथी उतरा और फटाफट आम खाने लगा। जब हाथी का पेट भर गया तो राजू ने उसकी पूंछ पकड़ ली, उसके पैर-दूसरे ने पकड़े और दूसरे ने तीसरे के। तभी वह हाथी तेजी से आकाश में उड़ चला। पूंछ से लटके अनेक लोगों वाले हाथी को आकाश में जाते देख, नीचे खड़े गांव के कई लोग आश्चर्य करने लगे। नीचे लटके हुए लोगों ने राजू से पूछा-स्वर्ग के लड्डू कितने बड़े-बड़े होते हैं?
यह सुनते ही राजू के मुंह में पानी भर आया और उसने हाथी की पूंछ छोड़ दी और दोनों हाथों को फैलाकर कहा, ‘इतने-इतने बड़े।’ जब वह उन्हें हाथ के इंगित से बता ही रहा था कि तब तक वे सब के सब आकाश से नीचे गिर गये और हाथी अपनी तीव्र गति से स्वर्ग को चला गया। गांव के जिन लोगों ने उन्हें गिरते देखा था, हंसते हुए एक-दूसरे से चर्चा करने लगे—चले थे बेचारे स्वर्ग के लड्डू खाने।

कमल सोगानी

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