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मंगली की टिकुली

शाम झुक आयी, तो मंगली ने ताखे से ठिकरा उठाया और दीवार पर खिंची चिचिरियों के आगे एक और चिचिरी खींच दी। ठिकरा ताखे पर रखकर वह चिचिरियां गिनने लगी- एक-दो-तीन ... दस तक वह गिन चुकी, तो उसने बायें हाथ की कानी अंगुली मोड़ ली।
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कालजयी रचना
भैरव प्रसाद गुप्त

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शाम झुक आयी, तो मंगली ने ताखे से ठिकरा उठाया और दीवार पर खिंची चिचिरियों के आगे एक और चिचिरी खींच दी। ठिकरा ताखे पर रखकर वह चिचिरियां गिनने लगी- एक-दो-तीन … दस तक वह गिन चुकी, तो उसने बायें हाथ की कानी अंगुली मोड़ ली। दस तक ही गिनती उसे आती थी … रामा ने कहा था कि जिस दिन उसकी तीन अंगुलियां मुड़ जाएंगी, उसी दिन शाम को अंधेरा होते ही वह आएगा और पोखरे के भींटे पर उससे मिलेगा।
पिछले छ: महीने से इसी तरह मंगली की भेंट रामा से होती थी … कभी पोखरे के भींटे पर, कभी नदी के किनारे मन्दिर के पीछे, कभी सीवाने की बगिया में, कभी डीह बाबा के पास। पहली बार जब रामा भागा था तो उसने किसी से कुछ भी न कहा था। उस दिन गांव में रात को बड़ी देर तक खुसुर-पुसुर चलती रही थी।
उस दिन पन-पियाव के समय रामा के लिए जल-घेराव लेकर मंगली अपनी ननद के साथ फारम पर गयी थी। सासु जर में पड़ी थी। ससुर बिटिया के बियाह के चक्कर में अन्ते गये थे। सासु ने कई बार बिटिया को बाहर भेजा था कि कोई लड़का या बड़का मिले, तो उसे बुला लाये, चिरौरी-मिनती करके उससे बेटे के लिए जल-घेराव भेजवा देगी। लेकिन कोई भी न मिला था।
सासु जर में न गिरी होती, तो वह भी किसी के खेत में कटाई करती होती। सासु को उसी में घाव लगा था और वह गिर पड़ी थी। लेकिन ससुर न रुके थे। बिटिया सयानी हो गयी थी, इस लगन में उसे पार-घाट लगा ही देना था। वही बेटे से कह गये थे कि कुछ दिन फारम पर काम करके कुछ पैसा कमा ले, बिटिया के विवाह में जरूरत पड़ेगी। लेकिन रामा फारम पर फिर नहीं जाना चाहता था। कई बार फारम का मालिक उसे अपने यहां से भगा चुका था। उसका कहना था कि रामा फारम के मजूरों को भड़काता है। माई ने उसे समझाया था कि जब तक उसका जी ठीक नहीं हो जाता, या बुढ़ऊ लौट के नहीं आ जाते, तब तक वह फारम पर काम कर ले, फिर जहां जी में आये, जाकर काम करे, उसे कौन रोकेगा! दो-चार रोज की तो बात है।
फारम पर मजूरों की किल्लत थी। सुबह रामा पहुंचा, तो मालिक ने उसे यह चेतावनी देकर रख लिया कि वह सिर्फ अपने काम से मतलब रखेगा, मजूरों से वह और कोई बात न करेगा।
दो दिन बुढ़िया ही कांपती-डोलती बेटे का जल-घेराव और दोपहर का सत्तू दे आयी थी। तीसरे दिन वह बिलकुल लस्त हो गयी थी। जल-पियाव की बेरा जब ढलने लगी, तो आखिर मंगली ने कहा-कहीं तो हमीं जल-घेराव दे आयीं?
-तू कहवां जइबे, नवकी?-माई ने व्याकुल होकर कहा-चार दिन के आइल बहुरिया, तोरा के तऽ रस्तो नइखे मालूम!
हार-पछताकर उसने कहा-तू बिटिया के साथे ले ले …
ननद-भौजाई जल-घेराव लेकर फारम की ओर चलीं। भौजाईं भौंहों तक घूंघट काढ़े हुई थी।
ट्रैक्टरों को तेजी से चक्कर काटते देखकर मंगली का सिर घूमने लगा, हर ट्रैक्टर जैसे एक बवण्डर में पड़ा घूम रहा हो और भूसे की आंधी में नहा रहा हो। सांस से जाकर शायद कोई तिनका मंगली के गले में फंस गया, मंगली खांसी रोकने की कोशिश करती हुई भी खांसी न रोक पायी, तभी उसके कानों में किसी की आवाज पड़ी- ई केवनि हऽ रे? बड़ा टिकुली चमकावतिया?
मंगली की देह थरथरा उठी। न संभालती, तो रस-भरा लोटा उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ता।
ननद की भौंहें चढ़ गयीं। होंठ बिचक गये। उसने नाक फुलाकर आवाज की ओर देखा, तो फिर दूसरी आवाज आई-ओ महुआ के पेड़ के ओर बढ़ जो, सुगिया, ओनिए रमुआ खेत काटत बा।
ननद ने भौजाई का खाली हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी देह की आड़ में ले आगे बढ़ी।
लेकिन मंगली का तो जैसे तन-मन जल रहा था, उसके पांव तेज-तेज उठने लगे।
रामा ने उन्हें महुए के पेड़ के नीचे खड़े देखा, तो पुकार लगाकर दौड़ता हुआ खेत से उनके पास आ गया। हांफते हुए उसने पूछा- माई के का हाल बा?
सुगिया ने चबेने की पोटली हाथ में थमाते हुए कहा-ठीक नइखे।
साये में बैठते हुए रामा ने कहा-बइठऽसन।-और वह चबेने की पोटली खोलने लगा।
सुगिया उसके सामने बैठ गयी। लेकिन मंगली मुंह फेरकर खड़ी रही।
उसके उस तरह खड़े होने के ढंग से ही जैसे रामा को लगा कि कोई बात है। उसने एक फांक मुंह में डालते हुए सुगिया से पूछा-का बात हऽ? तोर भउजी …
-तू खा।-सुगिया ने कहा और अपनी भौजी का हाथ पकड़कर उसे बैठाने लगी।
लेकिन मंगली ने अपना हाथ छुड़ा लिया और जैसे थोड़ा और भी ऐंठकर खड़ी हो गयी।
रामा ने जल्दी-जल्दी चबेना फांका और लोटे का रस गटक लिया। फिर बोला-अब बताव, सुगिया, का भइल हऽ?
तभी मंगली ने अपने माथे की टिकुली नोंचकर रामा के सामने फेंक दी।
सुगिया कांप उठी। लटपटाती जबान से उसने बता दिया कि मालिक ने भौजी की टिकुली देखकर बोली मारी थी …
-अच्छा, तोहनिका जा सन!
सुगिया ने लोटा और अंगोछा उठाया और अपनी भौजी का हाथ पकड़कर चल पड़ी।
रामा वहीं खड़ा उन्हें जाते हुए आंखें तरेरकर देखता रहा। वे खलिहान को पार कर गयीं, तो उसने टिकुली उठाकर टेंट में खोंसी और खेत की ओर चला गया।
वह डंठलों को हंसुए से काट रहा था, जैसे किसी दुश्मन का गला काट रहा हो।
वह एकदम चुप काम कर रहा था। उसके साथियों में से कई बोलियां बोल-बोल वे खुद हंसते रहे, लेकिन रामा न बोला, सो न बोला, हंसने की तो बात दूर।
रामा जब कभी इस तरह चुप लगाता था, कोई-न-कोई वारदात होके रहती। एक बार नहीं, कई बार वे देख चुके थे। एक बार पटवारी को उसने मारा था। दारोगा से तो कई बार भिड़ा था। और फारम के मालिक से तो अकसर ही वह लड़ जाता था, उसी ने फारम पर औरतों का काम करना बन्द कराया था। नौजवानों से सलाह-मशविरा किया था और एक रात वे सब फारम के कमरे पर टूट पड़े थे। रामा ने मालिक को ललकारा था-चलाओ! बन्दूक चलाओ! फिर देखो कि तुम्हारी हड्डी-पसली का क्या होता है!
मालिक ने डरकर बन्दूक नहीं चलायी थी।
फारम पर का अड्डा टूट गया था। मालिक शाम होने के पहले ही गांव की अपनी हवेली में घुस जाता था। लेकिन उसकी बदमाशियां खत्म न हुईं थीं। मजूरों को गालियां देना, उन्हें पिटवा देना, उनकी बहू-बेटियों को उड़वा लेना, सब जारी था। सिर्फ उसका ढंग बदल गया था। हर वारदात के बाद मालिक उसे फारम से निकाल देता, पुलिस बुलाता, लेकिन वह बहुत आगे न बढ़ता, वह जानता था कि पुलिस और गुण्डों की सुरक्षा से फारम नहीं चलता, फारम मजूरों से चलता है, मजूरों से दुश्मनी करके वह फारम नहीं चला सकता, इसलिए रामा फिर जब उसके यहां काम के लिए जाता था तो वह उसे काम दे देता था। मालिक भी अपनी घात में रहता था और रामा भी अपनी घात में रहता था, मालिक अपने गुण्डों की संख्या बढ़ा रहा था तो रामा भी अपनी किसान सभा को मजबूत कर रहा था। मजूर अब खाली हाथ कभी न रहते, लाठी, हंसुआ, छुरा और कुछ नहीं तो एक लोहे का टुकड़ा जरूर उनके पास रहता था, रामा का कहना था, पास में कोई हथियार रहने से मन का बल बना रहता है।
पश्चिम में सूरज बहुत काफी झुक गया, तो मजूर हाथ रोक उठ खड़े हुए। वे खेत से निकलने वाले ही थे कि उन्होंने देखा, मेड़ पर मालिक खड़ा है और उसे कोई छाता ओढ़ाये हुए है। मालिक ने ही अपनी कलाई घड़ी देखी और कहा-अभी साढ़े-पांच ही बजे हैं। एक घण्टा तुम लोग और काम करो।
मजूरों ने रामा की ओर देखा। लेकिन रामा के मुंह से सहसा कोई बात न निकली, वह अपनी लाल-लाल आंखों से मालिक को घूर रहा था और हंसिया की बेंट पर उसकी पकड़ सख्त हो गयी थी।
मालिक ने फिर कहा-रामा ने ठीक से काम करने का वादा किया है, तुम लोग उसकी ओर क्या देख रहे हो? चलो, काम शुरू करो, वक़्त बरबाद मत करो!
तब रामा के मुंह से जैसे एक-एक शब्द कंकड़ की तरह उसके दांतों से टूट-टूट कर निकला-पहले ही आधा घण्टा ज्यादा हम काम कर चुके हैं। और नहीं करेंगे!
-हम एक घण्टे की ज्यादा मजूरी देंगे-मालिक ने कहा तुम लोग काम करो।
-हमें नहीं चाहिए,-रामा ने कहा।
-तू जोरू-जांता वाला हुआ रामू,-मालिक बोला-और तू कहता है, तुझे पैसे नहीं चाहिए? बड़ी जुलुम जोरू तुझे मिली है, बे, तू क्यों उसे भूखों मारेगा? चल, काम शुरू करने को कह। एक घण्टा और काम कर लेगा तो तेरी जोरू के लिए चूड़ी-टिकुली …
फिर क्या हुआ, कोई न देख पाया। जैसे बिजली कौंधी हो। और फिर छाते वाले की पुकार सुनाई पड़ी-पकड़ो! पकड़ो उसे! …
रामा को कौन पकड़ता? मालिक गिर पड़ा था। रामा के हंसिये की नोक मालिक की दायीं आंख में घुस गयी थी …
मजूरों ने सबसे पहले मंगली और सुगिया को उनके घर से हटाया। माई ने पूछा, तो उन्होंने कोई बहाना बना दिया। खबर मिली कि फारम के मालिक को कस्बे के अस्पताल ले जाया गया और वहां से जिले के अस्पताल को पहुंचाया गया। गांव में पुलिस का दल आया। रामा के घर और पास-पड़ोस के घरों की उन्होंने तलाशी ली। फिर कुछ मजूरों को धमकाया और पीटा।
रात-भर गांव में खुसुर-फुसर होती रही। मंगली और सुगिया से कोई क्या पूछता?
रामा फिर नहीं लौटा। उस पर वारण्ट कट गया था। रामा के घर के दरवाजे पर नोटिस टंग गयी थी।
पन्द्रह दिन के बाद पड़ोस के गांव का एक जवान रात को आया और महेसा से मिला। वह रामा की खबर लेकर आया था। आधी रात को गांव के जवानों का नदी के किनारे के मन्दिर में बिटोर था। रामा बिटोर में बात करेगा। बिटोर के बाद रामा अपने घर के लोगों से भी मिलना चाहेगा। सारी जिम्मेदारी महेसा पर है।
बिटोर के बाद सबसे पहले रामा अपनी माई से मिला था, फिर काका से और फिर सुगिया से। अन्त में वह अपनी मंगली से मिला था। मंगली ने देखा, उसके हाथ में गड़ांसा था। रामा ने कहा-मुंह उठा के देख रे! ए तरे सिर का झुकवले बाड़े?
मंगली मुंह उठाकर मुसकरायी। रामा ने भी उसे मुसकराकर देखा।
अपनी टेंट से टिकुली निकालकर रामा ने मंगली की ललाट पर चिपका दी और बोला-एके संभार के रखिहे! ओ सैतान के अभी एगो आंखि बचल बा! हम फिर डीह बाबा के पास सात दिन बाद राम में मिलब। तोके खबर मिली। तोके लिवावे केहू पहुंची।
फारम का मालिक दायीं आंख से काना हो गया था, लेकिन उसकी बायीं आंख का शैतान और जबर हो उठा था। रामा गांव छोडक़र भाग गया था। मालिक के मन का डर निकल गया था। दो कान्सटेबल हवेली पर और चार कान्सटेबल फारम पर पहरा देते, गांव के सभी मजदूरों को उसने निकाल दिया। बाहर से मजूरों को बुलाया।
फारम की भदई की तैयार फसल में से रात को कहीं-न-कहीं कुछ कटकर गायब हो जाती। न मालिक की समझ में कुछ आता और न कान्सटेबलों की। रात में फसल की निगरानी का कार्यक्रम बना। मजूरों में से कुछ को रात का खाना देकर पहरे पर तैनात किया गया। कान्सटेबलों को गश्त पर रखा गया। फिर भी फसल कटती रही।
तब थाना खलबला उठा। दारोगा का ध्यान अचानक ही रामा की ओर गया। अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद वह रामा को पकड़ न पाया था। उसने फिर एक बार अपना जोर लगाया। मालिक को यह खबर मिली तो उसकी कानी आंख रामा के घर की ओर उठ गयी, उसे याद आयी रामा की जोरू, जिसकी टिकुली उसने एकदिन फारम के खलिहान के पास देखी थी।
एक रात गांव में एक बड़ा तमाशा उठ खड़ा हुआ। यह खबर चारों ओर फैल गयी कि फारम के मालिक के दो गुण्डे रामा के घर में घुसे थे। औरतों ने हल्ला मचाया और मर्द जब वहां पहुंचे तो उन्हें मालूम हुआ कि गुण्डे औरतों की मूसलों से चोट खाकर भाग खड़े हुए, लोग खूब हंसे और औरतों की पीठ भी ठोंकी-अब के बा जे हमारी बहू-बेटी की ओर आंख उठा के देखी?
जवानों के बिटोर होते रहे। कभी इस गांव में, कभी उस गांव में। हर गांव में फारम खुले थे, हर गांव में मालिक थे और हर गांव में मजूर और छोटे-छोटे किसान थे। सारा इलाका ही एक संघर्ष-भूमि बन गया। कई मालिक तो अपनी जान बचाने के लिए रात को थाने पर चले जाते। लेकिन काने मालिक ने अपनी हवेली और फारम को ही थाना बना दिया।
गांव में थोड़े दिनों के लिए सन्नाटा छाया रहा। रामा ठीक दिन पर, ठीक जगह पर, ठीक समय पर आता और मंगली से मिल जाता। मंगली अपना माथ बांधती और सिन्दूर लगाती। माथे पर वह टिकुली साटना कभी भी न भूलती।
उस शाम मंगली की तीन अंगुलियां मुड़ गयीं तो वह खुश हो माथ बांधने बैठ गयी। सुगिया ताड़ गयी कि भैया मिलने वाले हैं, वह उसके पास जाकर बोली-आज हमहु चलब।
-चलऽ,-मुस्कुराकर मंगली बोली।
सुगिया भी तैयार हो गयी। झुटपुटा हुआ तो एक जवान ने सीधे उनकी झोंपड़ी में आकर माई के पांव छुए।
फिर मंगली की ओर देखकर बोला-आज अइसे ना चले के होई। चारों ओर कुत्ता सूंघऽत फिरऽत बाड़ें सन।
-फेर?-मंगली ने पूछा-कइसे चलीं?
सुगिया बोली आज-हमहूं चलब।
-ना,-जवान ने कहा-तू फेर कबो चलिह, आज नाहीं। आज इ अकेले जइहें। मरद के भेस में।
मंगली ने अपने होंठ काट लिये।
जवान बोला-देर मत करऽ। उसने एक छुरा मंगली के हाथ में पकड़ा दिया और बाहर हो गया।
मंगली कपड़े बदलती रही और सुगिया हंसती रही। ललाट की टिकुली उतारने में मंगली को बड़ा दुख हुआ। लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने टिकुली भी टेंट में खोंस ली। उसका इरादा था कि उनके पास पहुंचकर वह टिकुली माथे पर साट लेगी।
वे बाहर निकले तो झुटपुटा गहरा गया था। पगडण्डी पर वे अगल-बगल चल रहे थे। दोनों ओर गन्ने के खेत थे। वे यों ही कुछ बातें करते जा रहे थे। पोखरे का भींटा अब दूर नहीं था कि सहसा उन्हें दोनों ओर गन्ने में सरसराहट की आवाज सुनाई दी। वे इधर-उधर देखें कि पटापट उन पर लाठियां गिरने लगीं, जवान गिर पड़ा और संभलकर वह उठे-उठे कि उसने देखा कि आठ-दस लोग मंगली को उठाये गांव की ओर भागे जा रहे थे।
जवान भागकर भींटे पर पहुंचा और रामा को यह खबर दी। फिर वे दोनों वहां से तुरन्त निकल गये।
एक घण्टा बीतते-न-बीतते गांव के उत्तर में घड़ियाल बज उठा, टनन-टनन टनन-टनन। घड़ियाल लगातार बजता रहा और उसकी आवाज बढ़ती गयी, यहां तक कि गांव के चारों ओर घड़ियाल की आवाजें ऐसे गूंजने लगीं, जैसे घने काले बादल गरजते-तरजते मंडराते चले आ रहे हों, फिर उन बादलों में जैसे चारों ओर बिजलियां कडक़ उठी। गांव का अन्धकार अनगिनत मशालों से भक-भक जल उठा और उसका दायरा धीरे-धीरे फारम के मालिक की हवेली को घेरते हुए छोटा होने लगा।
हवेली और मरदाने के ओसारे में तैनात गुण्डे लाठी और कान्सटेबल बन्दूकें उठाकर खड़े हो गये। वे कुल गिनती में बारह थे और उनके सामने अनगिनत मशालें जल रहीं थीं। तभी मरदाने के अन्दर से एक चीख की आवाज आयी। उसे सुनकर बाहर की खामोशी भड़क उठी और धायं-धायं गोलियां बोल उठीं। कान्सटेबल और कई गुण्डे घायल होकर गिर पड़े तो मशालें मरदाने के ओसारे में आ गयीं। कइयों ने एक साथ जोर लगाया तो दरवाजे के अन्दर की किल्ली चरचराकर टूट गयी और पल्ले चौपट खुल गये। किसी पल्ले की चपेट में आकर ही शायद फारम का मालिक फर्श पर गिर पड़ा था। उस पर कई लाठियां एक ही साथ पड़ीं। खून के फव्वारे फूट पड़े। एक ने अपना गड़ांसा उठाया तो रामा ने उसे रोक दिया।
-नहीं, इसे मारना नहीं है!-रामा ने आगे आकर अपने लठ्ठबाजों को रोका। शैतानी की हम क्या सजा देते हैं, इसका सबूत बनकर इसे जिन्दा रहना चाहिए!
दो ने मालिक की महीन धोती चीड़-फाडक़र रख दी । रामा ने एक छुरी अपने टेंट से निकाली और मालिक का लिंग काटकर उसके मुंह पर दे मारा।
पलंग के पास फर्श पर मंगली बेहोश गिरी पड़ी थी। रामा ने उसे उठाया और अपने साथियों से कहा-अब चलो!
घड़ियाल खामोश हो गये। मशालें बुझ गयीं। कदमों की आवाजें दूर होती गयीं। हवेली को अन्धकार लील गया।

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