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तेनाली राम के किस्से

सांप मरा, लाठी न टूटी राजा कृष्णदेव राय का दरबारी गुणसुन्दर तेनाली राम से बहुत नाराज था। हंसी-हंसी में तेनाली राम ने कुछ ऐसी बात कह दी थी, जो उसे बुरी लग गई थी। वह मन-ही-मन तेनाली राम से बदला लेने की योजनाएं बनाया करता था। राजगुरु से तो तेनाली राम की कभी पटती ही […]
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सांप मरा, लाठी न टूटी

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राजा कृष्णदेव राय का दरबारी गुणसुन्दर तेनाली राम से बहुत नाराज था। हंसी-हंसी में तेनाली राम ने कुछ ऐसी बात कह दी थी, जो उसे बुरी लग गई थी। वह मन-ही-मन तेनाली राम से बदला लेने की योजनाएं बनाया करता था।
राजगुरु से तो तेनाली राम की कभी पटती ही नहीं थी। गुणसुन्दर और राजगुरु में दोस्ती हो गई। दोस्ती का कारण एक ही था कि उन दोनों का एक ही दुश्मन था— तेनाली राम। गुणसुन्दर को यह बात बहुत बुरी लगती थी कि राजा भी हर समय तेनाली राम की प्रशंसा किया करते थे। वह महाराज को भी भला-बुरा कहा करता। तेनाली राम को इस बात का पता था। एक बार गुणसुन्दर और राजगुरु दोनों ने मिलकर राजा से तेनाली राम की बहुत बुराई की और कहा, ‘महाराज, तेनाली राम पीठ पीछे भी आपकी बुराई करने से नहीं चूकता।’
महाराज को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन फिर भी उन्होंने तेनाली राम से पूछा, ‘क्या तुम सचमुच मेरे लिए गलत शब्द कहा करते हो?’
तेनाली राम सारी बात समझ गया। उसने कहा, ‘महाराज, इस सवाल का उत्तर मैं आपको आज रात दूंगा, पर आपको मेरे साथ चलना होगा।’
अंधेरा होने पर तेनाली राम राजा को लेकर राजगुरु के घर के पिछवाड़े पहुंचा और दोनों खिड़की के पास खड़े हो गए। अन्दर राजगुरु और गुणसुन्दर बातें कर रहे थे। ‘हमारे महाराज भी बस कान के कच्चे हैं। अब तक तेनाली राम जो कहता रहा, उसे ही वह सच मानते रहे, और आज हम दोनों की बातें सच मान लीं।’ कह कर गुणसुन्दर हंस पड़ा। उसने राजा को लेकर और भी कुछ उलटी-सीधी बातें कहीं। राजगुरु कुछ नहीं बोला, लेकिन उसने अपने दोस्त की बात को काटा भी नहीं।
राजा कृष्णदेव राय ने अपने कानों से सब कुछ सुना।
तेनाली राम बोला, ‘महाराज, अब तो आपको अपने सवाल का जवाब मिल गया।’ ‘हां तेनाली राम, राजगुरु के लिए हमारे मन में अब भी सम्मान है। लगता है तुमसे ईष्र्या के कारण राजगुरु भटक गए हैं और गलत आदमी की दोस्ती में फंस गए हैं। जैसे भी हो, इस दुष्ट गुणसुन्दर के जाल से राजगुरु को निकालना तुम्हारा काम है।’ राजा बोले।
‘आप चिन्ता मत कीजिए। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। बस, कुछ दिनों तक इन्तजार करना पड़ेगा।’ तेनाली राम ने कहा। कुछ दिन बाद तेनाली राम ने एक दावत दी। उसमें राजा कृष्णदेव राय भी पधारे। इसमें सभी दरबारी भी उपस्थित थे। राजगुरु भी, गुणसुन्दर भी। तेनाली राम ने यों ही गुणसुन्दर के कान में कुछ उटपटांग शब्द कह डाले थे। फिर जोर से तेनाली राम ने कहा, ‘मैंने तुमसे जो कुछ कहा है, किसी को बताना नहीं।’
गुणसुन्दर भौचक्का-सा तेनाली राम की ओर देख रहा था। इधर राजगुरु के मन में खटका हुआ। तेनाली राम जब गुणसुन्दर के कान में कुछ कह रहा था, तो उसकी निगाह राजगुरु पर ही थी। उसने सोचा— अवश्य कोई बात मेरे विषय में कही गई है। राजगुरु ने गुणसुन्दर से पूछा, ‘क्या कह रहा था तेनालीराम?’
‘कुछ नहीं।’ गुणसुन्दर ने कहा। राजगुरु ने सोचा— गुणसुन्दर मुझसे असली बात छिपा रहा है। दोस्त होकर भी अगर यह ऐसा करता है, तो ऐसी दोस्ती किस काम की? अवश्य तेनाली राम और यह दोनों मिलकर मेरा मजाक उड़ाते होंगे। मैं तो समझता था कि गुणसुन्दर मेरा सच्चा दोस्त है। उसके बाद राजगुरु ने गुणसुन्दर से बात करना और मिलना-जुलना बन्द कर दिया। दोनों की दोस्ती कुछ ही दिनों में बीती हुई कहानी बनकर रह गई। राजा ने तेनाली राम से कहा, ‘सचमुच, मुश्किलों को सुलझाने में तुम्हारा कोई जोड़ नहीं। ऐसा काम किया है तुमने कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।’

प्रस्तुति : अपूर्व त्रिवेदी

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