अरविंद तिवारी
वह रिटायर्ड अफ़सर हैं। कोढ़ में खाज यह कि वह ईमानदार अफ़सर रहे हैं। ईमानदार अफसर रिटायर होने के बाद भी दुख देता है। उससे परिवार और मोहल्ला दुखी रहता है। वह अपने सेवाकाल में हर शख़्स को शंका की नज़र से देखते थे। यहां तक कि आईएएस अधिकारी को भी। उन्हें लगता था, यह बड़ा अधिकारी उन्हें प्रताड़ित कर रहा है। कोरोना बीमारी में उनका यह शंकालु स्वभाव उनके लिए रक्षा कवच बन गया है।
वह सुबह-सुबह अपनी छत पर टहलते हैं। चूंकि ईमानदार अफसर थे, इसलिए छत छोटी ही है। उनके टहलने को लोग टहलना नहीं कहते। दल-बदल करवाकर बनाई गई सरकार को भी लोग लोकतंत्र का हिस्सा नहीं मानते। पर चूंकि बहुमत है, अतः लोकतंत्र का छोर पकड़ में आ जाता है। इस छोर को पकड़ कर पूरा देश चलाया जा सकता है। दरअसल, जहां सरकारों को गिरा कर नई सरकार बनाई जाती है, वहां इस छोर को नए तरीके से पकड़ा जाता है। लोकतंत्र की कमीज़ कभी पेंट के भीतर हो जाती है, कभी बाहर! यह प्रयोग देश की अवाम और मीडिया को बोर नहीं होने देता।
वह छोटी छत को छोटा नहीं मानते। उनका दावा है कि उनकी छत पर जो आसमान है, वह अन्य छतों की अपेक्षा बड़ा है। बड़ा आसमान हो तो शाम और बिहान दोनों अच्छे लगते हैं। रिजॉर्ट में ठहरी सियासत को आसमान तक मयस्सर नहीं है। वह लकी हैं कि सियासत में नहीं हैं। वह हर तरह से अपने को संतुष्ट कर लेते हैं, वरना उनके खानदान में कभी किसी ने नगरपालिका का चुनाव तक नहीं लड़ा। वह उस देश के वासी हैं, जहां भगवान किसी भी भेष में मिल जाता है। आजकल देवता सोए हुए हैं, इसलिए कोरोना कैरियर किसी भी भेष में मिल जाता है। बचपन में साइकिल के ज़रिए उन्होंने कैरियर का महत्व जाना था। उम्र के इस पड़ाव पर वह डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर आदि बीमारियां अपने कैरियर पर लादे हुए हैं। अगर कोरोना और लद गया तो वह धड़ाम से गिर जाएंगे!
पत्नी और बच्चे अब मात्र उनके फेसबुक फ्रेंड बनकर रह गए हैं। वार्तालाप वाट्सएप तक सीमित हो गया है। इस तरह की दूरी रखकर वह रिश्तों में नजदीकी बनाए हुए हैं! वह दिन में कई बार कॉल बेल को सैनिटाइज करते हैं। वह कोरोना के एक्टिव हुए बिना ही एक्टिव केस हो गए हैं! रक्षाबन्धन पर बहन और बेटी को आने से रोक दिया।
सुबह उठकर वह डब्ल्यूएचओ को गाली देते हैं। चीन में जब यह बीमारी फैल रही थी तो चेताया नहीं और अब डरा-डरा के मारे डाल रहा है! साले के नए गोदाम के उद्घाटन अवसर पर वह हवन से दूर रहे। साला बुरा मान गया। वह हवन वाले पण्डित जी को भी कोरोना कैरियर मानते हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि परिजन उन्हें ही कोरोना कैरियर मानने लगे हैं! परिजनों ने उन्हें घर में ही आइसोलेट कर दिया है। अब उनका छत पर टहलना बन्द कर दिया गया है।