आज अनलॉक-तीन ऐसे समय में क्रियान्वित हो रहा है जब शुक्रवार को बीते 24 घंटे में पचपन हजार संक्रमण के मामले सामने आए और कुल संक्रमितों का आंकड़ा सवा सोलह लाख से ज्यादा हो गया है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होते ही अचानक संक्रमण की दर में अप्रत्याशित तेजी आई है। नि:संदेह लॉकडाउन के चार चरणों के बाद लोगों की सक्रियता बढ़ी है और संक्रमण की दर भी जो हमें चिंताजनक आंकड़ों से रूबरू करा रही है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हमने अनलॉक की प्रक्रिया बिना तैयारी के शुरू की है? क्या हम चार चरणों के लॉकडाउन से संक्रमण रोकने के लक्ष्य हासिल कर पाये हैं? क्या केंद्र व राज्य सरकारों ने लॉकडाउन के दौरान कोरोना से युद्धस्तर पर लड़ने के लिये पर्याप्त तैयारी कर ली थी? क्या चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार किया जा सका है? एक हकीकत यह भी है कि देश में अब टेस्टिंग, ट्रैकिंग तथा ट्रीटमंेट अभियान में तेजी आई है। रोज छह लाख टेस्टिंग का दावा किया जा रहा है, जिसे प्रतिदिन दस लाख करने का लक्ष्य रखा गया है। निस्संदेह जांच का दायरा बढ़ने से संक्रमितों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। सवाल यह है कि टेस्टिंग-ट्रैकिंग के बाद हम पीड़ितों को पर्याप्त ट्रीटमेंट दे पा रहे हैं? निस्संदेह चार चरणों के लॉकडाउन के बाद सामान्य स्थिति बहाल करने की जरूरत थी ताकि महीनों घरों तक सीमित रहे लोग अपनी दैनिक अावश्यकताओं को पूरा कर सकें। यानी जान के साथ जहान को भी तरजीह देने की जरूरत थी। वह भी ऐसी अवस्था में जबकि हमारी अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के चलते बुरी तरह से लड़खड़ाई हुई थी। निस्संदेह अब धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि अनलॉक-तीन में जरूरी राहत तो ठीक है लेकिन क्या जिम खोलने का निर्णय जरूरी था? जिमों की अधिकांश गतिविधियों में मास्क लगाना भी संभव नहीं होता। क्या इससे संक्रमण बढ़ने की आशंका नहीं बनेगी?
दरअसल, देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में जैसी तेजी आ रही है, उसके मद्देनजर जहां सरकारों को सतर्क रहने की अावश्यकता है, वहीं जनता को भी किसी तरह की लापरवाही से बचने की जरूरत है। यह बात अलग है कि कुछ राज्यों में आई बाढ़ ने ऐसी विकट स्थितियां पैदा कर दी हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना कठिन हो रहा है। मगर सामान्य स्थिति वाले राज्यों में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि अभी कोरोना का संकट टला नहीं है। अनलॉक की प्रक्रिया सिर्फ जरूरी आवश्यकताओं को ध्यान में रख शुरू की गई है, इसे जीवन को स्वच्छंद बनाने के अवसर के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। कहना मुश्किल है कि महामारी कब तक कहर बरपाती रहेगी, लेकिन उम्मीद है कि साल के अंत तक कारगर वैक्सीन आने के बाद जीवन पटरी पर लौट सकेगा। महाराष्ट्र और तमिलनाडु आदि राज्यों ने लॉकडाउन को बढ़ाया है, कुछ अन्य राज्य भी कुछ समय तक लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। त्रिपुरा में भी लॉकडाउन चार अगस्त तक बढ़ाया गया है। राज्यों की जरूरतों के हिसाब से सरकारों को फैसले लेने चाहिए। खासकर कन्टेनमेंट जोन में तो किसी भी तरह की कोताही समाज के हित में नहीं कही जा सकती। इसमें जहां प्रशासन को सख्ती बरतनी चाहिए, वहीं लोगों को जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। निस्संदेह चरणबद्ध अनलॉकिंग प्रक्रिया का मूल्यांकन होना चाहिए कि कहीं चूक से संक्रमण तो नहीं बढ़ रहा है। राहत जरूरी है, मगर छूट का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। नागरिकों का आर्थिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक कल्याण तो हो, मगर ये छूट संक्रमण की वाहक न बने। रात का कर्फ्यू हटाने के निहितार्थों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि यह कहीं स्वच्छंदता का वाहक न बन जाये। साथ ही आने वाले दिनों में स्वतंत्रता दिवस समारोहों को भी हालात के मद्देनजर सिर्फ प्रतीकात्मक रूप में ही मनाया जाये ताकि संक्रमण की शृंखला को तोड़ा जा सके।