एस.एस. सांगवान
भारत में कृषि वस्तुओं की जब भी कीमतें कम होती थीं तो किसानों को परेशानी होती थी। अस्सी के दशक के अंत में सूखे और कम कीमतों के की वजह से 1990 में पहली ऋण माफी हुई और लगभग उन्हीं कारणों से वर्ष 2008 में दूसरी बार ऋण माफी की गई थी। इसी तरह, कई राज्यों को कृषि ऋण माफी के लिए जाना पड़ा। यह संबंध साबित करता है कि किसानों की समस्याओं में फसलों की कीमत एक महत्वपूर्ण कारक है। इसी वजह से भारत सरकार ने 2018 में सभी कृषि वस्तुओं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगभग डेढ़ गुना वृद्धि की।
दरअसल, किसानों को ये एमएसपी नहीं मिल पा रही हैं। खबरों के अनुसार, सरकार ने खरीफ फसलों बाजरा, कपास और दालों की खरीद शुरू नहीं की है। खरीद कुल उत्पादन का सिर्फ छोटा प्रतिशत है। नेफेड मूल्य समर्थन योजना के तहत दालों और तिलहन के कुल उत्पादन का अधिकतम 25 प्रतिशत खरीदता है, जबकि एफसीआई गेहूं, चावल और कुछ मोटे अनाज खरीदता है, जो केवल कुछ राज्यों में सीमित है। एफसीआई द्वारा वर्ष 2014-15 से 2017-18 के दौरान कुल उत्पादन की औसत गेहूं खरीद का केवल 28 प्रतिशत, धान की 33 प्रतिशत और कोर्स अनाज का 1 प्रतिशत खरीदा गया। एफसीआई खरीद पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश (गेहूं) तक सीमित है जबकि आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान हाल के वर्षों में कुछ हद तक शामिल हो गए हैं। पीएसएस के तहत खरीफ 2017 से तिलहन और दालें की खरीद बहुत अधिक रही है। यद्यपि इसमें कुल उत्पादन का केवल 12 प्रतिशत कवर किया गया है।
शांता कुमार समिति की रिपोर्ट एफसीआई द्वारा सीमित खरीद की सिफारिश के बावजूद, अभी भी पंजाब और हरियाणा में गेहूं और धान का कुल उत्पादन खरीदा जा रहा है। वर्तमान में, एफसीआई के पास गेहूं और चावल का स्टॉक अनुशंसित स्टॉक का लगभग 3 गुना है। इसी प्रकार, दालों और तिलहनों के भंडार नेफेड द्वारा अगली कटाई के मौसम तक नहीं बेचे जाते हैं, जिससे आगे खरीद करना मुश्किल हो जाता है। हाल के वर्षों में दालों और तिलहनों की बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे रही हैं और सरकार खरीद स्टॉक को संभालने और बेचने में लगभग 1000-1500 रुपये प्रति क्विंटल की हानि हो रही है। अधिकांश फसलों की हमारी एमएसपी उनके अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों से अधिक है और इस प्रकार कृषि को कुल सब्सिडी सहायता हर साल बढ़ रही है। क्या हमारी अर्थव्यवस्था इसे सहन कर सकती है? या विकल्पों को आजमाने की जरूरत है। एरिया प्लानिंग; संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंगलैंड इत्यादि देशों द्वारा अपनाया गया वैकल्पिक तंत्र है।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में फसलों के तहत क्षेत्र की योजना एक बड़ी चुनौती है। सबसे पहले, राष्ट्रीय स्तर पर फसलवार कुल मांग का सटीक आकलन संबंधित विभागों द्वारा बुवाई के मौसम से पहले किया जाना चाहिए। फिर पिछले पांच सालों फसलवार औसत क्षेत्रों (बेस एरिया) का सही अनुमान और उनका राज्य वार वितरण किया जा सकता है। इस मानदंड के आधार पर राज्य अपने जिलों में वितरित कर सकते हैं। कृषि और बागवानी विभाग के राज्य अधिकारी एमएसपी में खरीद के लाभ देने के लिए बुवाई के मौसम से पहले फसलवार व्यक्तिगत किसान के क्षेत्र को पंजीकृत कर सकते हैं। जब किसी विशेष फसल के नीचे पंजीकृत, क्षेत्र जिला व राज्य की आवंटित सीमा तक पहुंच जाता है, इसके पंजीकरण को रोका जा सकता है और शेष किसान अगली सबसे अच्छी लाभकारी फसल के लिए पंजीकरण कर सकते हैं जहां सीमा नहीं पहुंच पाई है।
उत्पादन जरूरत के अनुसार होगा तब एमएसपी और बाजार मूल्य के बीच का अंतर कम होगा, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी खरीद की मांग कम होगी।