दुनिया की सबसे लंबी सुरंग ‘अटल टनल’ बनकर तैयार है। हिमाचल प्रदेश के मनाली से लेकर सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण लेह-लद्दाख के बीच बनी इस सुरंग का उद्घाटन अगले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। भयानक बर्फबारी और दुर्गम क्षेत्र होने के कारण हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति और आसपास के लोगों का पूरे देश से लगभग 6 माह तक संपर्क कटा रहता था। इस सुरंग के बनने से जहां सालभर आवाजाही रहेगी, वहीं 46 किलोमीटर की दूरी भी कम हो गयी। कई अन्य दृष्टिकोण से भी खास ‘अटल टनल’ के बारे में बता रही हैं प्रतिभा ज्योति
आपने कभी किसी टनल के अंदर गाड़ी फर्राटे से दौड़ाई होगी। अब अगर आपको देश की सबसे ऊंची और दुनिया की सबसे लंबी हाईवे टनल में अपनी गाड़ी दौड़ाने का मौका मिल जाए तो क्या करेंगे? निश्चित तौर पर टनल के जरिए आप बेहद ही रोमांचक यात्रा पर रवाना हो जाएंगे। ऐसा ही रोमांचक अनुभव होने वाला है रोहतांग की पहाड़ियों को चीर कर मनाली को लेह से जोड़ने के लिए बनी अटल टनल पर। यह समुद्र तल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी टनल है। यह 10 मीटर चौड़ी और 9 किलोमीटर लंबी है। पीर पंजाल की पहाड़ियों को काटकर बनायी गयी 9 किलोमीटर लंबी यह टनल पूरे साल मनाली को लाहौल घाटी से जोड़ेगी और मनाली-रोहतांग दर्रा सरचु-लेह मार्ग की सड़क लंबाई को 46किलोमीटर तक कम कर देगी। यानी समय के साथ-साथ पैसों की भी बचत।
इस टनल को बनाने का काम 28 जून 2010 को शुरू हुआ था। रोहतांग पास के नीचे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस टनल के निर्माण का फैसला 3 जून, 2000 को लिया गया था। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। पहले नाम रोहतांग टनल था, लेकिन वाजपेयी जी की 95वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने इसका नाम अटल टनल रखने का फैसला किया। अटल टनल के निर्माण की लंबी कहानी है और इसे बनाने का श्रेय कांग्रेस और भाजपा दोनों अपने खाते में लेती रही हैं। कांग्रेस मानती है कि इसे बनाने का सपना सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा था और यह राजीव गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट था। इंदिरा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे अक्सर लाहौल स्पीति जाया करती थीं और लाहुलियों की कष्ट भरी जिंदगी देखकर ऐसा टनल बनाने के बारे में सोचा जो उनकी रोजमर्रा की समस्याओं का अंत कर सके। सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण टनल का निर्माण रोहतांग पास के करीब हो सकता है या नहीं इस पर सबसे पहले एक प्रस्तावित योजना का आकलन 1990 में किया गया था, पर इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट को बनाने का फैसला अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए वर्ष 2000 में लिया। वाजपेयी ने 26 मई 2002 को निर्माण कार्य का विधिवत शुभारंभ किया।
इसके बाद जून 2004 में भूवैज्ञानिक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और दिसंबर 2006 में एक डिजाइन को अंतिम रूप दिया गया। बीआरओ को इस परियोजना पर तकनीकी तौर पर अंतिम स्वीकृति 2003 में मिली और 28 जून 2010 को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसकी आधारशिला रखी। उस समय इस टनल की अनुमानित राशि 1500 करोड़ रखी गई थी जो 10 साल बाद करीब 3500-4000 करोड़ पर पहुंच गई।
बीआरओ का अथक प्रयास, डीआरडीओ का डिजाइन
टनल का निर्माण बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने किया है। बीआरओ ही वह संस्था है जो देश की सीमाओं पर सड़कें, ब्रिज और टनल का निर्माण करती है। बीआरओ ने एफकॉन-स्ट्राबॉग ज्वाइंट वेंचर कंपनी से निर्माण करवाया। कंपनी के कई कर्मचारियों को प्रतिकूल परिस्थितियों में रहने का प्रशिक्षण भी दिया गया। यहां तक कि उन्हें भारतीय सेना के उन सैनिकों को बचाने के लिए दो बार उस कार्रवाई में शामिल होना पड़ा जो हिमस्खलन में दब गए थे। बीआरओ के महानिदेशक ले. जनरल हरपाल सिंह ने सेना के लिहाज से इस अति महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का अगस्त महीने में दो बार मुआयना किया। सामरिक दृष्टि से बेहद अहम माने जाने वाले इस प्रोजेक्ट में उनकी खासी दिलचस्पी है और वे अक्सर निर्माण कार्य को देखने जाते रहे हैं। टनल का डिजाइन तैयार करने में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने काफी मदद की। टनल घोड़े की नाल के आकार की सिंगल-ट्यूब जैसी है। इस डबल-लेन टनल में कई चीजें ऐसी है जो पहली बार की गई हैं।
बड़ी चुनौती बनी भागौलिक परिस्थिति
रोहतांग दर्रे में दुर्गम पहाड़ियां हैं। कड़ाके की ठंड, बर्फबारी, हिमस्खलन और पानी के कारण टनल के निर्माण में कई बाधाएं थीं। इंजीनियरों और मजदूरों को इसे बनाने में काफी पसीना बहाना पड़ा। मौसम की जटिलता और पानी के कारण कई बार निर्माण कार्य बीच में ही रोकना पड़ा। टनल को बनाने के लिए खुदाई का काम 2011 में ही शुरू हो गया बीआरओ को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहले 2015 इस प्रोजेक्ट की समय सीमा थी। बाधाओं और चुनौतियों के कारण यह समय सीमा आगे खिसकती रही, लेकिन बीआरओ ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया। इन चुनौतियों में निर्माण के दौरान सेरी नाला फॉल्ट ज़ोन, जो तकरीबन 600 मीटर क्षेत्र का सबसे कठिन स्ट्रेच शामिल था। यहां एक सेकंड में 140 लीटर पानी निकलता था और साथ में खतरनाक मकड़े भी। ऐसे में निर्माण बहुत मुश्किल और खतरनाक था। पीर पंजाल के करीब ही व्यास नदी बहती है और दो-तीन नाले और भी हैं इससे भी पानी बहुत आ जाता था। टनल के दोनों सिरों का मिलान 15 अक्तूबर, 2017 में हुआ। शुरुआत में टनल की लंबाई 8.8 किलोमीटर नापी गई थी, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अब इसकी पूरी लंबाई 9.02 किलोमीटर है।
दोनों ओर से शुरू हुआ काम
टनल को बनाने के लिए दो तरफ से काम शुरू किया गया था। कुल्लू मनाली की तरफ से साउथ पोर्टल और लाहौल स्पीति की तरफ से नॉर्थ पोर्टल से निर्माण शुरू हुआ। टनल के निर्माण में 14,508 मीट्रिक टन स्टील और 2,37,596 मीट्रिक टन सीमेंट की खपत हुई। निर्माण के लिए ड्रिल और ब्लास्ट तकनीक का उपयोग किया गया। बताया जा रहा है कि निर्माण के लिए न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग विधि का इस्तेमाल करके 14 लाख क्यूबिक मीटर मिट्टी और चट्टानों का उत्खनन हुआ।
दिन-रात जुटे रहे सैकड़ों श्रमिक
टनल का काम पूरा करने के लिए लगभग 3,000 संविदा कर्मचारियों और 650 नियमित कर्मचारियों ने इस प्रोजेक्ट पर 24 घंटे शिफ्ट के माध्यम से काम किया। कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद काम थोड़े दिन रुका रहा क्योंकि लॉकडाउन के कारण श्रमिक और सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, लेकिन कुछ समय बाद लाइटिंग, वेंटिलेशन, इंटेलिजेंट ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम आदि फिट किए जाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य समय पर समाप्त करने के लिए राज्य सरकार साथ में जुटी। बीआरओ ने खास मंजूरी लेकर कामगारों की सुरक्षा के सभी उपायों के साथ यहां काम जारी रखा।
80 किमी प्रति घंटा हो सकती है रफ्तार
टनल के भीतर दो लेन सड़क है और कोई भी वाहन 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है। टनल के अंदर से एक साथ 3000 कारें या 1000 से ज्यादा ट्रक चल सकते हैं। टनल हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के दूरदराज के सीमा क्षेत्रों को हर मौसम में देश की मुख्यधारा से जोड़े रखेगा। बेहद अत्याधुनिक तकनीक से बनाई गई इस टनल से गुजरने पर आपको कई सुविधाएं मिलेंगी और सुरक्षा का एहसास होगा। इसका अलग ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम बनाया गया है। बीआरओ का अपना एफएम होगा जो गाड़ी में बज रहे एफएम के जरिए सुरक्षा से जुड़ी हर जानकारी देगा। यहां आपको फुल मोबाइल नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलेगी। टनल में प्रत्येक 150 मीटर पर एक टेलीफोन सुविधा है। आग से बचाव के लिए हर 60 मीटर पर फायर हाइड्रेंट लगाया गया है। प्रत्येक 500 मीटर पर आपातकालीन निकास और प्रत्येक 2.2 किमी पर गुफा मोड़ मिलेगा, हर एक किमी पर हवा की गुणवत्ता नापने वाले मॉनिटर होगा, हर 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरे से लैस ब्राडकास्टिंग सिस्टम लगाया गया है। सीसीटीवी कैमरों के जरिए वाहनों की स्पीड या दुर्घटनाओं पर नजर रखी जाएगी। टनल के भीतर भी सेफ्टी टनल या इमरजेंसी टनल है जिसका इस्तेमाल किसी गाड़ी में आग लगने या दुर्घटना होने की स्थिति में लोगों की जान बचाने के लिए किया जाएगा।
सामरिक दृष्टि से खास
इन दिनों भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है। ऐसे समय में इस टनल के उद्घाटन से इसका सामरिक महत्व काफी बढ़ जाता है। माना जा रहा है कि यह टनल पाक-चीन सीमा पर भारत की सामरिक ताकत बढ़ाएगा और रणनीतिक रूप से पड़ोसी देशों पर एक दबाव भी रहेगा। टनल जम्मू और कश्मीर में रणनीतिक सीमाओं तक सेना की गतिशीलता में तेजी लाएगा। इसका बड़ा फायदा सैन्य बलों को होगा। अब तक सर्दियों के दिनों में संपर्क और उन तक राशन पहुंचाना एक बड़ी चुनौती रहती थी। टनल के खुल जाने से सेना की पूर्वी लद्दाख को जाने वाली सप्लाई लाइन अब साल भर खुली रहेगी। पूर्वी लद्दाख पहुंचने के लिए अब दो रास्ते होंगे। पहला कुल्लू मनाली से लेह-लद्दाख जो इस टनल से जुड़ेगा और दूसरा श्रीनगर होकर जोजिला पास से जाने वाली सड़क। जोजिला पास से जाने वाली सड़क नवंबर से मई तक पूरी तरह बंद हो जाती है जिससे सैनिकों के लिए जरूरत का अन्य सामान सर्दियों से पहले ही उन तक पहुंचाना पड़ता है। इस टनल के जरिए हथियार, टैंक और तोप भी आसानी से सैनिकों तक पहुंचाए जा सकते हैं।
बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
टनल के चालू हो जाने से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। इस टनल का फायदा सिर्फ मनाली और लेह वालों को ही नहीं होगा, बल्कि हिमाचल प्रदेश का जनजातीय क्षेत्र लाहौल-स्पीति को भी इससे कई अवसर मिलेंगे। लाहौल स्पीति में रोजगार के नए मौके मिल सकते हैं। इस टनल के खुलने से आदिवासी जिले में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक गतिविधियों को ऊंचाई मिलेगी। मनाली से लेह लद्दाख का रास्ता इस टनल से आसान हो गया है। अब कृषि, पर्यटन और बागवानी के क्षेत्र में विकास की नयी गाथा लिखी जाएगी। कुल्लू जिले के मनाली में पर्यटक खूब आते हैं। पर्यटक अक्सर वहां से लाहौल-स्पीति के केलंग की घाटियों में भी जाते हैं जहां धार्मिक स्थल है। वहां जाने में 5-6 घंटे लगते थे। पर्यटक अब कम समय में वहां पहुंच सकते हैं। स्थानीय लोगों, व्यापारियों और किसानों को बहुत फायदा होने की अपार संभावनाएं है। खासकर फल और सब्जी विक्रेताओं को बहुत फायदा होगा। मनाली से लेह-लद्दाख जाना आसान होने से काम-धंधे और रोजगार में बढ़त होगी। लाहौल-स्पीति में सब्जियों की खेती होती है जो ज्यादातर पंजाब और हिमाचल प्रदेश भेजी जाती है। यहां के किसानों को उम्मीद है कि वे अब जल्दी ही मनाली के मार्केट पहुंच जाएंगे। पहले सब्जियां समय पर मार्केट नहीं पहुंच पाती थीं और किसानों को मेहनताना भी ठीक नहीं मिल पाता था। यह टनल लाहुलियों की जिंदगी में उम्मीदों की किरणें लेकर नए सफर पर निकलने वाला है। रोहतांग के बाद शिंकुला और बारालाचा दर्रे पर भी ऐसे ही टनल निर्माण बनाने की तैयारी हो रही है।