विदेशी राजनयिकों की यात्रा से संबल
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति और इसे दो केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने पर पाकिस्तान तथा उसके सरपरस्तों ने जो हाय-तौबा मचायी थी, वह निरर्थक ही साबित हुई है। झूठ के किले ढहने लगे हैं। पाक को आकाश-पाताल एक करने पर जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो वह गुलाम कश्मीर को अपना भविष्य तय करने की आजादी की दलील देकर अपनी खिसियाहट निकाल रहा है। बहरहाल, अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को सींचने वाले अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद जो भ्रम फैलाये गये, उसकी हकीकत 24 देशों से आये राजनयिकों ने खुद अपनी आंखों से देखी है। हालांकि, उनकी यात्रा के आखिरी दिन शुक्रवार को आतंकवादियों के हमलों ने चिंता भी बढ़ायी है लेकिन यह भी पाक हुक्मरानों के इशारों पर यह जताने की कोशिश है कि कश्मीर घाटी अशांत है। बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है और राष्ट्रीय कानून व कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन से घाटी के लोग देश की मुख्यधारा की ओर उन्मुख हैं। हाल के दिनों में बर्फबारी के दौरान टूरिस्टों का जमावड़ा और घाटी में कई फिल्मों की शूटिंग होने से पता चलता है कि धीरे-धीरे घाटी में जनजीवन सामान्य हो रहा है। पाक में बैठे आकाओं के इशारे पर घाटी में अलगाव के बीज बोने वाले राजनेताओं की अब चल नहीं पा रही है। स्थानीय निकाय चुनावों में जनता ने जिस उत्साह से चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया, उसने घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जीवंत होने का ही प्रमाण दिया है। सुखद यह है कि राज्य के मुख्य राजनीतिक दलों ने परोक्ष रूप से गठबंधन बनाकर इन चुनावों में भागीदारी की। यानी राजनीतिक दलों ने राज्य में हुए बदलाव पर मोहर लगा दी है। निस्संदेह यह केंद्र सरकार की सुनियोजित कार्रवाई की सफलता ही कही जायेगी जो देश के कन्याकुमारी से कश्मीर तक एक होने की अवधारणा को पुष्ट भी करता है।
बहरहाल, यह अच्छी पहल रही कि विदेशी राजनयिकों को कश्मीर का दौरा कराया गया। बजाय वे भ्रामक स्रोतों से सूचनाएं हासिल करें, उन्होंने स्वयं कश्मीर की स्थिति को करीब से देखा। इस प्रतिनिधिमंडल में यूरोप, अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिकी देशों के राजनयिक शामिल थे। हालांकि, इससे पहले यूरोपीय यूनियन का प्रतिनिधिमंडल भी घाटी का दौरा कर चुका है। प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक समूहों से संवाद किया। नवनिर्वाचित जिला विकास परिषद सदस्यों से भी मुलाकात की। इस दल का मकसद यही देखना था कि क्या डेढ़ साल बाद राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सुचारु रूप से स्थापित हुई हैं और राज्य अमन की ओर लौटा है? राज्य में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होने की बात प्रतिनिधिमंडल से मिलने वाले स्थानीय लोगों ने कही। इसके बावजूद केंद्र सरकार को कुछ अतिरिक्त कदम कश्मीरियों का विश्वास हासिल करने के लिये उठाने होंगे, जिससे घाटी में दीर्घकालीन शांति का मार्ग प्रशस्त हो सके। जरूरी है कि उस सोच का खात्मा हो जो अलगाववाद व आतंकवाद फैलाने में मददगार होती है। राज्य में रोजगार सृजन के विशेष प्रयास करने होंगे ताकि चंद रुपयों के लालच में युवा पत्थर फेंकने व आतंक फैलाने वालों के मददगार न बनें। निस्संदेह नागरिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देनी होगी। हालिया स्थानीय निकाय चुनाव और फोर-जी मोबाइल सेवा की बहाली इसी दिशा में सार्थक कदम है। साथ ही न तो आतंकवाद से लड़ाई में चूक हो, न ही लोगों में सुरक्षा बलों के प्रति अविश्वास पनपे, जिससे घाटी के लोगों का देश से जुड़ाव होगा। तभी हमारी बहुलतावादी संस्कृति का परचम दुनिया में लहरायेगा। लोकतंत्र की मजबूती के लिये इसे राज्य का दर्जा देना जरूरी है। हाल ही में गृहमंत्री ने कहा भी है कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जायेगा। हालांकि, शुक्रवार को श्रीनगर में अंधाधुंध फायरिंग में पुलिस के दो जवानों की मौत चिंता बढ़ाने वाली है। बुधवार को भी आतंकियों ने एक रेस्तरां मालिक के बेटे की हत्या कर दी थी। शोपियां में लश्कर-ए-तैयबा के तीन आतंकियों का मारा जाना सुरक्षा बलों की चौकसी को दर्शाता है।