एक घुड़सवार बहुत दूर से चला आ रहा था। रास्ते में एक जगह उसने देखा कि पास ही रहट चल रहा है। सोचा कि घोड़े को पानी पिला लें और खुद भी जरा सुस्ता लें। घोड़ा प्यासा था। दोनों रहट के पास पहुंचे। रहट की विचित्र आवाज सुनकर घोड़ा बिदका तो घुड़सवार ने कहा, भाई! जरा आवाज बंद करें तो मेरा घोड़ा पानी पी ले। रहट बंद कर दिया गया। लेकिन रहट बंद होते ही पानी भी बंद हो गया। घोड़े वाले ने कहा, ‘अरे भाई! मैंने तो आवाज बंद करने को कहा था, पानी बंद करने के लिए नहीं।’ किसान ने कहा, ‘आवाज बंद करने के लिए रहट तो बंद करना ही पड़ेगा। घोड़े को पानी पिलाना है तो बेहतर है कि उसकी लगाम साधो और घोड़े को पुचकारो।’ इसी प्रकार मानव मन भी निरर्थक शंका से भयभीत होकर वांछित लाभ से वंचित रहता है। उसे भी घोड़े की तरह नियंत्रण में लाना होता है। यही प्रकृति का नियम है।
प्रस्तुति : जयगोपाल शर्मा