यकीनन इस समय देश और दुनिया में कोरोना की दूसरी घातक लहर के बीच कोरोना वैक्सीन पहली अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। स्थिति यह है कि भारत सहित ब्राजील, ईरान, तुर्की, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया, पेरू सहित दुनिया के अधिकांश देश कोरोना महामारी के हॉटस्पॉट बने हुए हैं। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि जहां गरीब देशों में 500 लोगों में से एक व्यक्ति को कोरोना का टीका लगा है, वहीं अमीर देशों में हर चार में से एक व्यक्ति को टीका लग चुका है। कोरोना से 30 फीसदी मौतें गरीब और मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं। इन देशों में कोरोना वैक्सीन शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध होने से ही दुनिया अकल्पनीय मानवीय और आर्थिक त्रासदियों से बच सकेगी।
ऐसे में निश्चित रूप से जहां भारत में सरकार द्वारा एक ओर देश में कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति सभी लोगों तक न्यायसंगत रूप से सुनिश्चित की जानी होगी, वहीं कोरोना वैक्सीन की वैश्विक जरूरत को पूरा करने हेतु वैक्सीन उत्पादन में अमेरिका सहित अन्य देशों के सहयोग और अधिकतम उत्पादन क्षमता की नई रणनीति से कोरोना वैक्सीन के वैश्विक हब बनने की संभावनाओं को मुट्ठियों में लेना होगा। इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर सभी लोगों को मुफ्त कोरोना वैक्सीनेशन की सुविधा दिए जाने हेतु विचार करे।
गौरतलब है कि 26 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच टेलीफोन वार्ता में जो बाइडेन ने कहा कि अमेरिका भारत के लिए कोरोना वैक्सीन के उत्पादन से संबंधित आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति पर लगी रोक को हटाते हुए इसकी सरल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। बाइडेन ने यह भी कहा कि जिस तरह कोरोना महामारी की शुरुआत में भारत ने अमेरिका को मदद भेजी थी, उसी तरह अब अमेरिका भी भारत की मदद के लिए कटिबद्ध है। ऐसे में भारत के लिए अमेरिका की नई मदद भारत को कोरोना वैक्सीन निर्माण के नए मुकाम की ओर तेजी से आगे बढ़ाएगी।
इतना ही नहीं, दुनिया के शक्तिशाली संगठन क्वाड ग्रुप के चार देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत द्वारा भारत में वर्ष 2022 के अंत तक कोरोना वैक्सीन के सौ करोड़ डोज़ निर्मित कराने और इस कार्य में भारत को वित्तीय व अन्य संसाधन जुटाकर सहयोग करने का जो निर्णय लिया है, इससे भी भारत के दुनिया की कोरोना वैक्सीन महाशक्ति के रूप में उभरने में मदद मिलेगी ।
यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोई एक वर्ष पहले देश में कोरोना की पहली लहर शुरू होने पर कोरोना रोकथाम के लिए वैक्सीन की शोध शुरू हुई थी, देखते ही देखते एक वर्ष में यह शोध सफलतापूर्वक पूरी हुई और देश में कोरोना वैक्सीन का उत्पादन भी शुरू हो गया। देश में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेका के साथ मिलकर बनाई गई सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड’ तथा स्वदेश में विकसित भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ को दुनियाभर में सबसे प्रभावी वैक्सीन के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। इन दोनों वैक्सीनों का उपयोग 16 जनवरी से शुरू हुए देशव्यापी टीकाकरण अभियान में किया जा रहा है। देश में दो मई तक कोरोना वैक्सीन की 15 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत कोरोना वैक्सीन का भी वैश्विक स्तर पर बड़ा सप्लायर बनने की तैयारी कर रहा है। इस दिशा में नीतिगत स्तर पर 15 अप्रैल को सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशंस (सीडीएससीओ) की तरफ से कई अहम फैसले लिए गए हैं। वैक्सीन उत्पादन से जुड़े कच्चे माल का आयात करके बड़ी मात्रा में कोरोना वैक्सीन का निर्यात भी किया जा सकेगा। अब शीघ्र ही विदेशी कंपनियां भारत में अपनी सब्सिडियरी या फिर अपने अधिकृत एजेंट के माध्यम से वैक्सीन का उत्पादन कर सकेंगी। ज्ञातव्य है कि हैदराबाद की प्रमुख दवा कंपनी डॉ. रेड्डी लैबोरेटरीज (डीआरएल) कोविड-19 के लिए रूस में तैयार टीका स्पूतनिक-वी के लिए भारतीय साझेदार है। शुरुआत में स्पूतनिक-वी का आयात किया जाएगा और इस वैक्सीन की पहली खेप एक मई को प्राप्त हुई है। कुछ समय बाद स्पूतनिक-वी का 60 से 70 फीसदी वैश्विक उत्पादन भारत में होगा।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने कोरोना टीका के उत्पादन व वितरण की जो रणनीति बनाई है। उसके तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी उपयुक्तता के अनुरूप कोरोना टीका उत्पादक देशी या विदेशी कंपनियों से टीके की खरीद तथा अपने प्रदेश में टीका लगाने संबंधी उपयुक्त निर्णय ले सकेंगी। राज्यों के लिए जहां कोविशील्ड बना रही सीरम इंस्टिट्यूट ने कोरोना वैक्सीन की कीमत कम करके प्रति डोज 400 रुपये की जगह 300 रुपये की है, वहीं भारत बायोटेक ने भी कोरोना वैक्सीन की कीमत 600 रुपये प्रति डोज से घटाकर 400 रुपये कर दी है।
ज्ञातव्य है कि देश में सरकार के समर्थन से दुनिया की सबसे बड़ी टीका विनिर्माता सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया अपनी मासिक उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 20 करोड़ खुराक कर सकती है। भारत बायोटेक सालाना 70 करोड़ खुराक की उत्पादन क्षमता तथा जाइडस कैडिला सालाना उत्पादन क्षमता 24 करोड़ खुराक करने की डगर पर आगे बढ़ सकती है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने कोरोना टीकाकरण में अहम भूमिका निभाने वाली दो भारतीय टीका निर्माता कंपनियों सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक को क्रमश: 3,000 करोड़ रुपये और 1,500 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि दी जानी सुनिश्चित की है।
नि:संदेह भारत द्वारा कोरोना वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन न केवल देश के लोगों की टीकाकरण जरूरत को बहुत कुछ पूरा कर सकेगा, वरन् भारत का यह अभियान दुनिया के गरीब और विकासशील देशों के करोड़ों लोगों को कोरोना टीकाकरण में सहयोग करके उन्हें कोरोना की पीड़ाओं से बचा सकेगा। विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि दुनिया के कुछ विकसित देश इस वर्ष 2021 के अंत तक कोरोना टीकाकरण के पूर्ण लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। भारत भी 2022 के अंत तक टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के हरसंभव प्रयास करेगा। लेकिन दुनिया के अधिकांश गरीब व विकासशील देशों के लिए टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में लंबा समय लगेगा।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि यदि सभी गरीब और विकासशील देशों की पहुंच वैक्सीन तक संभव नहीं हो सकी तो विश्व मानवता और विश्व अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। यदि गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों को वैक्सीन नहीं मिली, तो दुनिया के करोड़ों लोगों को कोरोना की पीड़ाओं से बचाने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना कठिन होगा, क्योंकि कोरोना नए-नए रूप में लोगों की जान लेता रहेगा और बार-बार वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
उम्मीद की जाये कि केंद्र सरकार एक ओर देशभर में दिखाई दे रही वैक्सीन के वितरण संबंधी तात्कालिक मुश्किलों को दूर करेगी, वहीं दूसरी ओर कोरोना वैक्सीन का उत्पादन अधिकतम क्षमता से करके देश व दुनिया के गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के लोगों के लिए कोरोना वैक्सीनेशन में भारत की कल्याणकारी भूमिका सुनिश्चित करेगी। उम्मीद करें कि भारत के कोरोना वैक्सीन के उत्पादन का वैश्विक हब बनने की जो नई संभावनाएं निर्मित हुई हैं, उन्हें रणनीतिक प्रयासों से मुट्ठियों में लिए जाने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।