अरुण कुमार कैहरबा
हिंदी फिल्म ‘बाजार’ का एक मशहूर गीत है, ‘फिर छिड़ी रात, बात फूलों की…’ इस गीत में आगे है, ‘आपका साथ, साथ फूलों का आपकी बात, बात फूलों की…।’ आज इस गीत की तरह ही हम फूलों के साथी का जिक्र कर रहे हैं जिन्हें लोग ‘फ्लावरमैन’ कहते हैं। उनका नाम है डॉ. रामजी लाल जयमल। उनका उद्देश्य और संदेश है, ‘फूल लगाएं, आओ धरा को रंगों और खुशबू से महकाएं।’ हरियाणा के सिरसा के गांव दड़बी निवासी डॉ. रामजी की फूलों की मुहिम अब पूरे हरियाणा सहित दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड आदि राज्यों में पहुंच गई है। वे फूल उगाते हैं। फूलों के बीज संग्रहीत करते हैं। एक उत्सव का आयोजन कर फूलों की पौध बांटते हैं। पौध को उगाने में लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। इस वर्ष उन्होंने 50 से अधिक किस्म के फूलों के बीज हरियाणा, उत्तर प्रदेश व पंजाब के विभिन्न स्थानों पर बोए हैं। फिल्मकार व निर्देशक नकुल देव ने उनके कार्य पर चार साल उनके साथ रहकर डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाई। फिल्म का नाम रखा गया-‘बिफोर आई डाई।’ फिल्म का अनेक स्थानों पर प्रदर्शन हो चुका है।
नफरत को बदला प्रेम में
डॉ. रामजी ने बताया कि उन्होंने करीब 14 साल पहले अपने गांव में ऐसे स्थान पर फूल उगाए, जहां लोग मृत पशुओं को डाल जाते थे। वह कहते हैं, ‘जब मैंने फूलों की पौध लगाने का काम शुरू किया तो लोग ताने मारने लगे। घरवाले भी हिदायत देते। जैसे-जैसे पौधे बड़े हुए, उन पर फूल लगने लगे तो नफरत करने वालों की भाषा भी प्रेम में बदल गयी। तब से फूल उगाने का अभियान बढ़ता गया।’ हालांकि इस मुहिम में सारे आर्थिक संसाधन और ऊर्जा झोंक देने के कारण उनके परिवार में आर्थिक मुश्किलें भी आईं, लेकिन उनके समर्पण और इरादों के आगे मुश्किलें बौनी साबित हुईं। अब आलम यह है कि जहां से कभी दुर्गंध के कारण गुजरना मुश्किल होता था, अब वहां फूल महकते हैं। उन्होंने बताया कि करनाल रेंज की पुलिस महानिदेशक भारती अरोड़ा सहित पुलिस अधिकारियों का सहयोग मिला तो जेलों में भी फूल खिलने लगे। अब तो आलम यह है कि पौध उगाने के लिए स्कूल के अध्यापक व किसान उन्हें स्वेच्छा से जमीन मुहैया करा रहे हैं। लोगों को फूलों की पौध मुफ्त में दी जाती है। बस शर्त यह रहती है कि पहले क्यारियां बना लें। ताकि पौधे खराब न हों। इस बार करनाल जिले में ही निगदू, रायतखाना, नन्हेड़ा के सरकारी स्कूलों सहित पुलिस महानिदेशक के आवास और जेल में पौध लगाई गई। कैथल व यमुनानगर सहित कई जिलों की जेलों में या तो फूलों के बीज बोए गए या फिर पौध रोपी गई। करनाल, गुरुग्राम, कुरुक्षेत्र, सिरसा सहित कई जिलों में पौध वितरण उत्सव आयोजित करके फूलों के करोड़ों पौधे मुफ्त बांटे गए, जिनमें अब फूल खिल गए हैं।
प्रकृति प्रेम को जगाना भी उद्देश्य
डॉ. रामजी जयमल कहते हैं कि उनका उद्देश्य फूल उगाने के साथ-साथ बच्चों व युवाओं के मन में प्रकृति प्रेम के बीज उगाना भी है। वह कहते हैं, ‘फूलों से परिवेश सुंदर बनता है। मन को सुकून मिलता है। कई पौधे पेड़ बनते हैं। उद्देश्य धरती को सुंदर और हरा-भरा बनाना है।’ फिल्मकार नकुल देव ने बताया कि उन्हें डॉ. रामजी के फूल उगाने और बांटने के अभियान के बारे में पता चला तो प्रकृति प्रेमी होने के नाते और जानने की इच्छा हुई। जब उन्होंने डॉ. रामजी के प्रयासों को देखा तो उन्हें और ज्यादा समझने की इच्छा हुई। उनके साथ कैसे चार साल बीते, पता ही नहीं चला और वह भी इस मुहिम का हिस्सा बन गए। फिल्म में भी बड़े मार्मिक ढंग से दिखाया गया कि किस तरह से घर की जरूरतों को दरकिनार कर उन्होंने फूलों को तरजीह दी। डॉ. रामजी ने कहा कि लगातार प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ के कारण जैव-विविधता पर बुरा असर हुआ है। कुछ वर्ष पूर्व उनके गांव में मोर ही मोर दिखाई देते थे। वह चाहते हैं मोर, गौरैया और मधुमक्खियां लौट आएं। डॉ. रामजी का सपना है कि उनके मरने से पहले चारों तरफ मोर हों। उनकी इसी इच्छा से डॉक्यूमेंटरी का आइडिया आया।
गोबर का गमला बनाया
पर्यावरण के लिए नुकसानदायक पॉलिथीन का नर्सरियों में हो रहे प्रयोग से दुखी डॉ. रामजी जयमल को गोबर का गमला बनाने का आइडिया आया। उन्होंने गोबर से ऐसा गमला इजाद किया, जो पौधे को पूरा पोषण देता है। पौधा जब दूसरी जगह लगाया जाता है तो गमले के साथ ही पौधा लगाया जाता है। इससे पोषक तत्वों से भरपूर गमले से पौधे का विकास तेज गति से होता है।
सिरसा निवासी डॉ. रामजी लाल जयमल करीब डेढ़ दशक से फूलों की खेती करते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए वह फूलों की पौध बांटते भी हैं। कई ‘कटीली राहों’ पर चलकर फूलों को समर्पित इस शख्स को अब लोग ‘फ्लावरमैन’ कहने लगे हैं। उन पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म भी बन चुकी है।