सदियों से सोने की चमक इंसान को सम्मोहित करती रही है। मगर भारतीयों का सोने का मोह कुछ खास ही रहा है। अमीर-गरीब अपनी हैसियत के मुताबिक सोना हासिल करने की जुगत में रहते हैं। भारतीय संस्कारों में सोना सदा से अहम रहा है। अब चाहे कोई संस्कार पूर्ण हो या धार्मिक उत्सव, सोने की उपस्थिति रही है। अमीर-गरीब मां-बाप की कोशिश होती है कि बेटी की विदाई के वक्त अपनी क्षमता के मुताबिक सोने के आभूषण दिए जाएं, जो वक्त-बेवक्त उसके काम आ सकें। पुरानी कहावत है कि घर में रखा सोना मुसीबत का साथी होता है। शायद ऐसी तमाम वजहें होंगी कि मौजूदा दौर को सोने का स्वर्णिम काल कहा जा रहा है। बीते गुरुवार को वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट भारतीयों के इसी सोना मोह को उजागर करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अप्रैल से जून के बीच सोने की डिमांड 43 फीसदी और आभूषणों की 49 फीसदी बढ़ी है। जहां तक पूरी दुनिया की बात करें तो दुनिया में सोने की मांग 8 फीसदी घटी है। भारत में सोने में निवेश की एक वजह यह भी रही है कि मुद्रा का तो अवमूल्यन होता है लेकिन सोने के दाम में गिरावट कम ही होती है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि भारत में अप्रैल से जून के बीच सोने में निवेश बीस फीसदी बढ़ा है। जिसकी मात्रा अब बढ़कर तीस टन हो गई है। जबकि इसी अवधि के दौरान पिछले साल सोने में किये गये निवेश की मात्रा पच्चीस टन ही थी। देश में सोने की इस तेज मांग का असर सोने के आयात पर भी पड़ता है। डब्ल्यूजीसी की रिपोर्ट बताती है इस साल अप्रैल से जून के मध्य सोने का आयात 34 फीसदी वृद्धि के साथ 170 टन हो गया। जो बीते साल इस अवधि के दौरान 131 टन था। निस्संदेह यह प्रवृत्ति भारतीयों के सोने के मोह को ही दर्शाती है।
लेकिन वहीं इस स्वर्णिम तस्वीर का दूसरा स्याह पक्ष देश में जारी आर्थिक विषमता का खाक भी उकेरता है। तमाम वैश्विक संस्थाओं के द्वारा आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा व सुखद जीवन से जुड़े जो आंकड़े जारी किये जाते हैं उनमें भारत फिसड्डी ही नजर आता है। केंद्र सरकार के दावे को ही सही मानें तो देश में अस्सी करोड़ गरीब लोगों को कोरोना संकट के दौरान मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। देश में रिकॉर्ड संख्या में बेरोजगारी व महंगाई की मार से हलकान आबादी में सोना खरीदने वाले लोगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि निस्संदेह देश की आर्थिक विसंगति की तस्वीर ही उकेरती है। अभी देश कोरोना काल के सख्त लॉकडाउन व उसके बाद नौकरियों की छंटनी, वेतन कम करने का असर झेल रहा है वहीं छोटे कारोबार करने वाले करोड़ों लोग अभी कोरोना काल से पहले की आय को हासिल करने में सफल नहीं हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन लोग हैं जो सोने के शौक को पूरा कर रहे हैं? क्या यह विभाजन भारत व इंडिया के फर्क का पर्याय है? आर्थिक दृष्टि से एक पहलू यह भी है कि डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में आई गिरावट के चलते कुछ धनाढ्य लोग सोने को सुरक्षित निवेश मानकर चल रहे हैं। वहीं देश की मुद्रा का लेन-देन वित्तीय एजेंसियों के राडार पर होने के कारण लोग सोने में निवेश करके अपनी आय को सुरक्षित बनाना चाहते हैं। लेकिन इस महंगाई और बेरोजगारी के दौर में कितने लोग हैं जो सोने में निवेश कर सकते हैं? दरअसल, देश में सोने की खरीद व उससे जुड़े कारोबार को पारदर्शी बनाने की जरूरत है। जिससे सरकार को करों के जरिये तार्किक आय हो सके। वहीं दूसरी ओर देश को सोने के आयात में दुर्लभ विदेशी मुद्रा खपानी पड़ती है। देश के दो-तिहाई पेट्रो उत्पाद के आयातों के अलावा विलासिता के सोने के आयात के चलते हमारा वैश्विक व्यापार असंतुलन पैदा होता है जो देश की आर्थिक सेहत के लिये लाभदायक नहीं कहा जा सकता। यह ठीक है कि देश के पर्व-त्योहार तथा शादियों के सीजन सर्राफा बाजार को नई ऊर्जा देते हैं, लेकिन इसका लाभ देश की अर्थव्यवस्था को भी होना चाहिए।