US News : अमेरिका की चेतावनी बेअसर, फलस्तीन को राष्ट्र बनाने की तैयारी में ब्रिटेन
US News : अमेरिका के विरोध के बावजूद ब्रिटेन द्वारा फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में रविवार को मान्यता दिए जाने की उम्मीद है। ब्रिटेन का मानना है कि इजराइल ने गाजा में युद्ध के संबंध में रखी गई शर्तों को पूरा नहीं किया है। यद्यपि यह अपेक्षित कदम काफी हद तक प्रतीकात्मक है, ब्रिटेन को उम्मीद है कि इससे गाजा में संघर्ष को समाप्त करने के लिए कूटनीतिक दबाव बढ़ सकता है, साथ ही दीर्घकालिक शांति का मार्ग प्रशस्त करने में भी मदद मिलेगी।
ब्रिटेन के उपप्रधानमंत्री डेविड लैमी ने कहा कि फलस्तीन राष्ट्र की मान्यता की घोषणा रविवार को प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर द्वारा की जाएगी। लैमी इस महीने की शुरुआत तक विदेश मंत्री थे। उन्होंने ‘स्काई न्यूज' से कहा, ‘‘फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने का कोई भी फैसला, अगर आज बाद में लिया भी जाए, तो इससे रातोंरात फलस्तीन राष्ट्र नहीं बन जाता।'' लैमी ने कहा कि मान्यता से द्वि-राष्ट्र समाधान की संभावना को जीवित रखने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि फलस्तीनी लोगों को हमास के साथ जोड़ना गलत है।
जुलाई में, अपनी लेबर पार्टी के भीतर दबाव के बीच, स्टारर्मर ने कहा था कि यदि इजराइल गाज़ा में संघर्षविराम के लिए सहमत नहीं होता, संयुक्त राष्ट्र को मानवीय सहायता पहुंचाने की अनुमति नहीं देता और दीर्घकालिक शांति की दिशा में अन्य कदम नहीं उठाता, तो ब्रिटेन फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देगा। यह प्रत्याशित कदम इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से पहले आया है, जहां ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और फ्रांस सहित अन्य देश भी फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने की तैयारी कर रहे हैं।
साथ ही, यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राजकीय यात्रा के कुछ ही दिन बाद आया है, जहां उन्होंने इस योजना पर अपनी असहमति व्यक्त की थी। ट्रंप ने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर मेरी प्रधानमंत्री से असहमति है। दरअसल, यह हमारी कुछ असहमतियों में से एक है।'' अमेरिका और इजराइल सरकार सहित आलोचकों ने इस योजना की निंदा करते हुए कहा है कि यह हमास और आतंकवाद को बढ़ावा देती है।
स्टार्मर ने इस बात पर जोर दिया है कि फलस्तीनी लोगों के शासन के भविष्य में हमास की कोई भूमिका नहीं होगी और उसे 7 अक्टूबर, 2023 के हमलों में अब तक बंधक बनाए गए इजराइली बंधकों को रिहा करना होगा। फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने के लिए 140 से अधिक देश पहले ही कदम उठा चुके हैं, लेकिन फ्रांस और ब्रिटेन के फैसले महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये दोनों ही जी-7 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं।