बीजिंग, 28 अक्तूबर (एजेंसी)
चीन ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसका नया भूमि सीमा कानून मौजूदा सीमा संधियों के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा और संबंधित देशों को सामान्य कानून के बारे में अनुचित अटकलें लगाने से बचना चाहिए। चीन की राष्ट्रीय विधायिका नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने 23 अक्तूबर को भूमि सीमा क्षेत्रों के संरक्षण पर नया कानून अपनाया। इस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है क्योंकि इसे पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध के बीच पारित किया गया।
भारत ने नया भूमि सीमा कानून लाने पर बुधवार को बीजिंग पर हमला बोलते हुए कहा कि वह उम्मीद करता है कि चीन कानून के बहाने सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिति को एकतरफा बदल सकने वाली कोई भी कार्रवाई करने से बचेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कानून लाने के चीन के फैसले को ‘चिंता’ का विषय बताया क्योंकि इसका सीमा के प्रबंधन और समग्र सीमा प्रश्न संबंधी मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों पर प्रभाव पड़ सकता है।
भूमि सीमा कानून पर सवालों के जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, ‘यह एक सामान्य घरेलू कानून है जो हमारी वास्तविक जरूरतों को पूरा करता है।’ वांग ने कहा, ‘चीन की 22,000 किलोमीटर की भूमि सीमा है। इसके 14 पड़ोसी देश हैं। वांग ने कहा कि भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं, जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है, जबकि बीजिंग 12 अन्य पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा चुका है।
पैंगोंग झील, गलवान में झड़प के बाद बढ़ा तनाव
भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले साल 5 मई को पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद गतिरोध उत्पन्न हो गया था और फिर दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हजारों सैनिकों के साथ-साथ सीमा पर भारी अस्त्र-शस्त्र भी तैनात कर दिए थे। पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया था। कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से तथा अगस्त में गोगरा क्षेत्र से सैनिक पीछे हटा लिए थे। गत 10 अक्तूबर को हुई एक और दौर की वार्ता गतिरोध के साथ समाप्त हुई, जिसके लिए दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया था।