कोलंबो, 12 मई (एजेंसी)
श्रीलंका में विपक्ष के नेता रानिल विक्रमसिंघे को बृहस्पतिवार को देश के नये प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गयी। कुछ दिन पहले ही महिंदा राजपक्षे ने देश के बिगड़ते आर्थिक हालात के मद्देनजर हुई हिंसक झड़पों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 73 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नियुक्त किया। इससे पहले दोनों ने बुधवार को बंद कमरे में बातचीत की।
श्रीलंका के चार बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे को अक्तूबर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था। हालांकि दो महीने बाद ही सिरीसेना ने उन्हें इस पद पर बहाल कर दिया था। सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समगी जन बालावेगाया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों ने संसद में विक्रमसिंघे के बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी यूएनपी 2020 के संसदीय चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी और कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे भी हार गये थे। वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके। उन्हें ऐसा राजनेता माना जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटा सकते हैं।
राष्ट्रपति ने की सहयोग की अपील
व्यापक हिंसा के बीच कर्फ्यूग्रस्त श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने लोगों से सहयोग की अपील की है। सिलसिलेवार ट्वीट में उन्होंने कहा कि संसद कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली को समाप्त करने पर विचार करेगी। यह कदम उनकी शक्तियों पर अंकुश लगाएगा। यह विपक्ष की मुख्य मांगों में से एक है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘कार्यकारी राष्ट्रपति प्रणाली को खत्म करने की विभिन्न वर्गों की मांग पर विचार किया जाएगा। … मैं लोगों की जान और उनकी संपत्ति की रक्षा के लिए सरकारी तंत्र को अबाधित रूप से काम करने में मदद का विनम्र अनुरोध करता हूं।’
देश नहीं छोड़ सकते महिंदा राजपक्षे
श्रीलंका की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, उनके बेटे नमल राजपक्षे और 15 अन्य लोगों के देश छोड़ने पर रोक लगा दी। अदालत ने यह रोक पिछले सप्ताह कोलंबो में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हुए हमले की चल रही जांच के मद्देनजर लगाई है। अटॉर्नी जनरल ने 17 लोगों के विदेश जाने पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। उन्होंने अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि गोटागोगामा और माइनागोगामा प्रदर्शन स्थल पर हुए हमले की जांच के सिलसिले में इनकी श्रीलंका में उपस्थिति जरूरी है। गौरतलब है कि सोमवार को महिंदा राजपक्षे के समर्थकों द्वारा, सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर किए गए हमले के बाद देश में हिंसा भड़क गई थी।