न्यूयॉर्क, 19 अगस्त (एजेंसी) अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर तीखा हमला करते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में ओवल ऑफिस ‘कमान केंद्र’बनने के बजाए अफरातफरी वाले ‘तूफान केंद्र’ में तब्दील हो गया है। उन्होंने कहा कि ट्रम्प के लिए राष्ट्रपति का मतलब घंटो टीवी के सामने बैठकर समय बिताना, लोगों को सोशल मीडिया पर गाली देना और अपने कृत्यों की जिम्मेदारी नहीं लेना है। मोक्रेटिक पार्टी के चार दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,‘‘डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि हम विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं। खैर हम दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिकीकरण वाली एकमात्र अर्थव्यवस्था हैं और हमारी बेरोजगारी दर तिगुनी है।” उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन में जो बाइडेन को औपचारिक रूप से पार्टी का राष्ट्रपति उम्मीदवार नामित किया गया। क्लिंटन ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण काम है और इस साल का चुनाव कोविड-19 महामारी की वजह से बहुत कठिन काम है जिसमें 1,70,00 लोगों की मौत हुई है और लाखों नौकरियां चली गई एवं छोटे कारोबार बर्बाद हो गए। कोविड-19 से निपटने के तरीके की आलोचना करते हुए क्लिंटन ने कहा, ‘‘पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि वायरस नियंत्रण में है और जल्द ही यह खत्म हो जाएगा।” उन्होंने कहा, ‘‘ जब यह नहीं हुआ तो वह रोजाना टेलीविजन पर आकर बताते कि वह क्या शानदार काम कर रहे हैं जबकि वैज्ञानिक हमें महत्वपूर्ण सूचनाएं देने का इंतजार करते रहे। जब उन्हें विशेषज्ञों की सलाह पसंद नहीं आई तो उन्होंने उसे नजरअंदाज किया।’
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।