ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने फलस्तीनी राष्ट्र को दी मान्यता
नेतन्याहू भड़के, बोले- हमास को दिया जा रहा है इनाम
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ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा ने अमेरिका और इस्राइल के विरोध को दरकिनार करते हुए फलस्तीनी राष्ट्र को औपचारिक रूप से मान्यता देने की रविवार को पुष्टि की।राष्ट्रमंडल में शामिल और इस्राइल के लंबे समय से सहयोगी इन देशों की यह पहल गाजा में जारी युद्ध में इस्राइल की हरकतों के प्रति बढ़ते आक्रोश को दर्शाती है। इस बीच, इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना नहीं होगी। उन्होंने विदेशी नेताओं पर हमास को इनाम देने का आरोप लगाया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीअर स्टॉर्मर इस्राइल के खिलाफ कड़ा रुख नहीं अपनाने के लिए अपनी सत्तारूढ़ लेबर पार्टी में भारी दबाव का सामना कर रहे थे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य फलस्तीनियों और इस्राइलियों के बीच शांति की उम्मीदों को जिंदा रखना है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह हमास के लिए कोई तोहफा नहीं है। स्टार्मर ने एक वीडियो संदेश में कहा, 'मैं शांति और द्वि-राष्ट्र समाधान की आशा को पुनर्जीवित करने के लिए इस महान देश के प्रधानमंत्री के रूप में स्पष्ट रूप से कहता हूं कि ब्रिटेन औपचारिक रूप से फलस्तीन राष्ट्र को मान्यता देता है।' उन्होंने कहा, 'हमने 75 साल से भी पहले इजराइल राष्ट्र को यहूदी लोगों की मातृभूमि के रूप में मान्यता दी थी। आज हम उन 150 से अधिक देशों में शामिल हो गए हैं, जो फलस्तीनी राष्ट्र को भी मान्यता देते हैं। यह फलस्तीनी और इस्राइली लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य की प्रतिज्ञा है।' गौर हो कि इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस समेत और अधिक देशों के ऐसा करने की उम्मीद है। ब्रिटेन की तरह फ्रांस भी सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में शामिल है। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने अपने बयान में कहा कि रविवार को तीन देशों की ओर से की गईं घोषणाएं 'द्वि-राष्ट्र समाधान को नयी गति देने के समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा हैं।'
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ट्रंप का विरोध दरकिनार
ब्रिटेन ने अमेरिका के विरोध को दरकिनार करते हुए यह कदम उठाया है। कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन की यात्रा के दौरान इस योजना से असहमति जताई थी। ट्रंप ने कहा था, 'इस मामले पर मैं प्रधानमंत्री (स्टॉर्मर) से असहमत हूं।' अमेरिका और इस्राइल सरकार के साथ-साथ विभिन्न आलोचकों ने इस योजना की निंदा करते हुए कहा है कि यह हमास और आतंकवाद को बढ़ावा देगी।
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