वाशिंगटन, 5 मई (एजेंसी) प्रभावशाली भारतीय-अमेरिकी समूहों ने कनेक्टिकट स्टेट एसेंबली से उसके उस आधिकारिक पत्र को रद्द करने का आग्रह किया है, जिसमें उसने तथाकथित ‘सिख स्वतंत्रता घोषणापत्र’ की 36वीं वर्षगांठ पर एक अलगाववादी सिख निकाय को बधाई दी थी। गौरतलब है कि कनेक्टिकट प्रांत की आम सभा ने 29 अप्रैल को खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वर्ल्ड सिख पार्लियामेंट’ को उसके सिख स्वतंत्रता घोषणापत्र की 36वीं वर्षगांठ पर बधाई दी थी। कई भारतीय-अमेरिकी समूहों और समुदाय के नेताओं ने कनेक्टिकट आम सभा के सदस्यों और उसके नेतृत्व को इस कदम के खिलाफ पत्र लिखे हैं। उनका कहना है कि इस तरह का पत्र भारत की भूभगीय अखंडता पर सवाल उठाता है और बढ़ते भारत-अमेरिका संबंधों को कमजोर करता है। ‘मिलान कल्चरल एसोसिएशन ऑफ कनेक्टिकट’ ने कहा, ‘यह पत्र हमारे कनेक्टिकट के हित में नहीं है। इसलिए आपसे इसे रद्द करने का आग्रह किया जाता है।’ उसने कहा, ‘‘ पत्र असली मुद्दों से अनभिज्ञता का परिचायक है। कनेक्टिकट में भारतीय-अमेरिकी समुदाय से वार्ता और परामर्श किए बिना एक अवांछित क्षेत्र में दखल दिया गया है।’ ओहियो में ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन (एफआईए)’ ने कहा कि कनेक्टिकट आम सभा का, पत्र जारी करने का निर्णय ‘गैर जिम्मेदाराना’ है। न्यू इंग्लैंड में एफआईए ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक रूप से प्रेरित विध्वंसक हितों के लिए समुदाय के भीतर तनाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से संकीर्ण, नापाक और निंदनीय एजेंडे के तहत कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गलत सूचना के आधार पर पत्र जारी किया गया है। न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और कनेक्टिकट के एफआईए ने कनेक्टिकट की आम सभा के निर्वाचित सदस्यों से इस ‘‘दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण कदम” से जल्द से जल्द निपटने का आग्रह किया।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।