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Johatsu: जापान का काला राज, 'भाप की तरह' गायब हो जाते हैं लोग, बन जाते हैं रहस्य

Johatsu: हर साल जापान में कई हजार लोग ऐसे गायब हो जाते हैं, मानो वे हवा में विलीन हो गए हों। वे अपने परिवार, करियर, कर्ज और कई मामलों में अपनी पूरी पहचान तक पीछे छोड़ देते हैं। इन्हें जोहात्सु...
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Johatsu: हर साल जापान में कई हजार लोग ऐसे गायब हो जाते हैं, मानो वे हवा में विलीन हो गए हों। वे अपने परिवार, करियर, कर्ज और कई मामलों में अपनी पूरी पहचान तक पीछे छोड़ देते हैं। इन्हें जोहात्सु कहा जाता है, जिसका अर्थ है “वाष्पित हो जाना”। ये लोग समाज से गायब होने का फैसला खुद लेते हैं। अक्सर भारी दबाव, व्यक्तिगत असफलताओं या नई जिंदगी शुरू करने की बेचैनी के कारण।

यह सामान्य गुमशुदगी के मामलों से अलग है। यहां अपराध या हादसा कारण नहीं होता, बल्कि यह ज़्यादातर एक सोचा-समझा, जानबूझकर लिया गया कदम होता है।

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शर्म पर आधारित सांस्कृतिक परिघटना

“जोहात्सु” शब्द द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान में आर्थिक कठिनाइयों के दौरान गायब हो जाने वाले लोगों के लिए प्रयोग हुआ। आज यह शब्द व्यापक सामाजिक परिघटना को दर्शाता है। ऐसे पुरुष और महिलाएं जो आर्थिक बर्बादी, पारिवारिक टूटन, पढ़ाई में असफलता या मानसिक समस्याओं के कारण समाज से खुद को मिटा देते हैं।

जापान जैसी सामूहिकतावादी समाज में, जहां व्यक्तिगत असफलता केवल व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे परिवार की शर्म मानी जाती है, सामाजिक दबाव असहनीय हो जाता है। नतीजतन, कई लोग टकराव के बजाय चुप्पी और अपमान के बजाय गुमनामी चुन लेते हैं।

जोहात्सु बनने के सामान्य कारण

  • नौकरी छूटना, दिवालियापन या भारी कर्ज
  • तलाक, घरेलू हिंसा या परिवार से दूरी
  • छात्रों में प्रवेश परीक्षा में असफलता
  • मानसिक बीमारी और सहयोग की कमी
  • याकुज़ा (अपराध सिंडिकेट) या कर्ज़ वसूली से बचना

निगरानी वाले समाज में लोग कैसे गायब हो जाते हैं?

जापान अपनी उच्च तकनीकी निगरानी, राष्ट्रीय पहचान प्रणाली और रिकॉर्ड रखने की सख़्ती के लिए जाना जाता है। फिर भी हज़ारों लोग हर साल कैसे गायब हो जाते हैं? इसका उत्तर है “योनीगे-या” (रात को ले जाने वाली कंपनियां)। ये गुप्त सेवाएं उन लोगों की मदद करती हैं जो रातों-रात अपना जीवन छोड़ना चाहते हैं। ये लोग और उनका सामान चुपचाप ले जाते हैं, बिना कोई सवाल पूछे। कानूनी रूप से यह धुंधला क्षेत्र है, लेकिन पूरी तरह गैरकानूनी नहीं।

2017 की टाइम रिपोर्ट के अनुसार, योनीगे-या सेवाओं की लागत प्रायः 50,000 येन से 300,000 येन (लगभग 400–2,500 अमेरिकी डॉलर) तक होती है, जो गायब होने की जटिलता पर निर्भर करती है। कई लोग टोक्यो के सान्या या ओसाका के कामागासाकी जैसे हाशिए पर स्थित इलाकों में पहुंच जाते हैं, जहां पहचान की सख़्त जांच नहीं होती और अस्थायी मज़दूरी का काम आसानी से मिल जाता है।

पीछे छूटे परिवारों पर असर

पीछे छूटे प्रियजनों के लिए यह गुमशुदगी गहरे दुख, उलझन और आर्थिक कठिनाई लेकर आती है। कानूनी प्रक्रिया अधूरी रह जाती है न परिवार गुमशुदा को मृत घोषित कर सकता है, न संपत्ति का निपटान कर सकता है। भावनात्मक पीड़ा अलग।

कई परिवार सामाजिक शर्म और बहिष्कार (जिसे जापान में मुराहाचिबु या “गांव से निकाला जाना” कहा जाता है) के डर से गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराते। यह गहरी जड़ें जमाए सामाजिक डर ही गायब होने और खोज न करने, दोनों को बढ़ावा देता है।

विद्रोह नहीं, आखिरी चुपचाप विरोध

कई लोगों के लिए जोहात्सु विद्रोह नहीं बल्कि आख़िरी उपाय होता है। ऐसे समाज के खिलाफ़, जो दूसरी मौका देने के लिए तैयार नहीं दिखता। कुछ लोग सालों बाद लौट आते हैं और उनकी अनुपस्थिति को परिवार खामोशी से स्वीकार कर लेता है। बाकी जिंदगी भर गुमनाम रहते हैं।

पत्रकारों और फोटोग्राफरों—जैसे लियो रुबिनफीन (Wounded Cities) और लीना मोगेर व स्तेफ़ान रेमल (The Vanished) ने इस परिघटना का अध्ययन किया है। अनुमान है कि जापान में हर साल लगभग 1 लाख लोग किसी न किसी रूप में स्वेच्छा से गायब होने की कोशिश करते हैं।

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