मजदूरों के पुनर्वास के लिए क्या किया : हाईकोर्ट
पंजाब लैंड पूलिंग नीति के न्यायिक जांच के दायरे में आने के लगभग एक हफ्ते बाद, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार से भूमिहीन मज़दूरों और जीविका के लिए ज़मीन पर निर्भर अन्य लोगों के पुनर्वास के प्रावधान पर सवाल उठाया। राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया गया कि वह अदालत को बताए कि क्या नीति को अधिसूचित करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया गया था। ये प्रश्न तब उठे जब राज्य के महाधिवक्ता मनिंदरजीत सिंह ने जस्टिस अनूपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की खंडपीठ के समक्ष कहा कि नीति को स्थगित रखा जाएगा और अगली सुनवाई की तारीख यानी 7 अगस्त तक कोई और कदम नहीं
उठाया जाएगा।
पीठ ने टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट ने 'रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन एवं अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़' के मामले में यह निर्णय दिया था कि शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन आवश्यक है। वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेंद्र जैन न्यायमित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे थे।
आदेश जारी करने से पहले पीठ ने निर्देश दिया,'पंजाब के महाधिवक्ता इस अदालत को यह भी सूचित करें कि क्या इस नीति में भूमिहीन मज़दूरों और अन्य लोगों, जिनके पास ज़मीन नहीं है, लेकिन जो अपनी जीविका के लिए ज़मीन पर निर्भर हैं, के पुनर्वास के लिए कोई प्रावधान है।'
मामले में याचिकाकर्ता गुरदीप सिंह गिल ने पहले तर्क दिया था कि यह नीति एक मनगढ़ंत कानून है, जिसे कथित तौर पर एक केंद्रीय कानून के तहत बनाया गया है, जिसमें ऐसी योजना के लिए कोई प्रावधान नहीं है। उनके वकील गुरजीत सिंह गिल, मनन खेत्रपाल और रजत वर्मा ने भी अधिसूचना और नीति को मनमाना और उल्लंघनकारी बताते हुए रद्द करने के निर्देश देने की मांग की।