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उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- भारत ने ऐसी Democracy की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे

उपराष्ट्रपति ने कहा- ऐसी स्थिति न हो जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय करे
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की फाइल फोटो।
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नयी दिल्ली, 17 अप्रैल (भाषा)

Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लिये जाने के वास्ते समयसीमा निर्धारित करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले पर शुक्रवार को चिंता जताई और कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक ‘‘सुपर संसद'' के रूप में कार्य करेंगे।

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पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यह निर्धारित किया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर निर्णय लेना चाहिए।

धनखड़ ने यहां कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा। यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है।''

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का कार्य स्वयं संभालेंगे, जो ‘सुपर संसद' के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।''

धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर'' पर हैं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में'' कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का अवसर मिलेगा। उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है...।''

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