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हरियाणा कांग्रेस में जल्द सुलझेगा नेतृत्व का पेंच

हुड्डा को फिर से सीएलपी लीडर बनाने की तैयारी, राव नरेंद्र सिंह पर दांव खेल सकती है पार्टी
भूपेंद्र सिंह हुड्डा। -फाइल फोटो
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हरियाणा कांग्रेस में पिछले करीब एक माह से लटके संगठनात्मक और विधायक दल के नेता के नाम का ऐलान कभी भी हो सकता है। लंबे समय से पार्टी के भीतर खींचतान और गुटबाजी के कारण यह मामला अटका हुआ था, लेकिन दिल्ली से जुड़े सूत्रों के अनुसार अब हाईकमान ने हरी झंडी दे दी है। इस फैसले से एक तरफ जहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को एक बार फिर से कांग्रेस विधायक दल का नेता (सीएलपी लीडर) बनने का मौका मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बदलाव लगभग तय माना जा रहा है।

राव नरेंद्र सिंह। -फाइल फोटो

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अब कांग्रेस संगठनात्मक व नेतृत्व संबंधी उलझनों को ज्यादा समय तक लटकाना नहीं चाहती। हुड्डा को विपक्ष का चेहरा बनाना जहां अनुभवी और प्रभावी नेतृत्व की ओर इशारा है, वहीं प्रदेशाध्यक्ष पद पर बैकवर्ड नेता को लाकर पार्टी सामाजिक समीकरणों को साधना चाहती है। यह फैसला कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को कितना शांत करता है और चुनावी जमीन पर कितना असर डालता है, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। फिलहाल इतना तय है कि कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा में फिर से हुड्डा फैक्टर पर दांव लगाया है।

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हुड्डा की पकड़ बरकरार

कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा किसी से छिपा नहीं है। करीब दस वर्षों तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहने वाले हुड्डा 2019 से लेकर 2024 तक विधायक दल के नेता भी रहे। इसी हैसियत से वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाते रहे। हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 के बाद प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी खुलकर सामने आई और प्रदेशाध्यक्ष व सीएलपी लीडर दोनों पदों पर फैसला टलता रहा। अब सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी आलाकमान ने इस पेच को सुलझा दिया है और हुड्डा को एक बार फिर से विपक्ष में कांग्रेस का चेहरा बनाया जाएगा।

बैकवर्ड कार्ड से बदलेंगे समीकरण

प्रदेशाध्यक्ष पद पर कांग्रेस बैकवर्ड कार्ड खेलने जा रही है। मौजूदा अध्यक्ष चौधरी उदयभान की जगह पार्टी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह को कमान सौंप सकती है। राव नरेंद्र सिंह का राजनीतिक सफर भी दिलचस्प रहा है। वे 2009 में हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के टिकट पर नारनौल से विधायक बने और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। हुड्डा सरकार के दूसरे कार्यकाल (2009-14) में वे स्वास्थ्य मंत्री भी रहे। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष पद पर बैकवार्ड नेता को तवज्जो देकर कांग्रेस चुनावी समीकरण साधना चाहती है। खासतौर से दक्षिण हरियाणा में जहां राव नरेंद्र सिंह का अच्छा प्रभाव माना जाता है।

कार्यकारी अध्यक्षों का फॉर्मूला फिर लागू

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस इस बार भी प्रदेशाध्यक्ष के साथ दो से तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फॉर्मूला लागू कर सकती है। बवानीखेड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी रहे प्रदीप नरवाल और तेलूराम जांगड़ा के नाम संभावित कार्यकारी अध्यक्षों की सूची में शामिल हैं। पिछली बार चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे। उस समय पूर्व सांसद श्रुति चौधरी भी कार्यकारी अध्यक्ष बनीं, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव के बाद श्रुति और उनकी माता किरण चौधरी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। फिलहाल कांग्रेस में रामकिशन गुर्जर, जितेंद्र कुमार भारद्वाज और सुरेश गुप्ता कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। माना जा रहा है कि इसी तरह का संतुलन इस बार भी साधा जाएगा।

हुड्डा खेमे की मजबूती

राजनीतिक हलकों में इस फैसले को हुड्डा खेमे के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है। दरअसल, प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर जिलाध्यक्षों की सूची तक, कांग्रेस हाईकमान ने अक्सर गुटबाजी संतुलन साधने की कोशिश की है। पहले कुमारी सैलजा को पूरा कोटा देकर पार्टी ने उन्हें संतुष्ट किया था। अब हुड्डा खेमे को सीएलपी लीडर बनाकर और उनके समर्थकों को संगठन में तवज्जो देकर पार्टी एक बार फिर संतुलन साधने की कोशिश कर रही है।

रणदीप सुरजेवाला की भूमिका

दिल्ली से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, राव नरेंद्र सिंह की नजदीकियां हाल के दिनों में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ बढ़ी हैं। यही वजह है कि उनकी दावेदारी और मजबूत हो गई है। हालांकि इस तरह की भी खबरें हैं कि राव नरेंद्र सिंह की सीधे राहुल गांधी तक भी पहुंच बनी हुई है। बैकवर्ड कोटे से पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव और पूर्व सीपीएस राव दान सिंह का नाम भी चर्चाओं में बना रहा। खबरें यह हैं कि नेतृत्व ने राव नरेंद्र सिंह के नाम पर लगभग सहमति जता दी है।

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