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Supreme Court ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों को छूट के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई टाली

प्रधान न्यायाधीश ने कहा सभी वकीलों को मामले में दलीलें पेश करने के लिए इच्छित समय दिया जाना चाहिए
सांकेतिक फोटो
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नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर (भाषा)

Marital Misdeed Case: प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों को दी गई छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को चार सप्ताह के लिए टाल दी। प्रधान न्यायाधीश 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दिवाली की छुट्टियों पर शीर्ष अदालत के बंद होने से पहले यदि सुनवाई पूरी नहीं हुई तो वह सुनवाई पूरी नहीं कर पाएंगे और फैसला नहीं सुना पाएंगे।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी वकीलों को मामले में दलीलें पेश करने के लिए इच्छित समय दिया जाना चाहिए। पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।

पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई चार सप्ताह बाद किसी अन्य पीठ द्वारा की जानी तय की इस मामले में सुनवाई 17 अक्टूबर को शुरू हुई थी। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अनुसार, यदि कोई पति अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है को अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो उसे बलात्कार के अपराध के लिए अभियोजन से छूट दी जाती है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है।

यहां तक कि नये कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 में कहा गया है कि ‘‘पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्कार नहीं है।''

केंद्र ने कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल होगा कि सहमति थी या नहीं।

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