वक्फ संशोधन के कुछ प्रावधानों पर रोक, कानून बरकरार
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस विवादास्पद मुद्दे पर 128 पन्नों का अंतरिम आदेश जारी किया। पीठ ने कहा कि वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले पांच साल तक इस्लाम का पालन करने संबंधी प्रावधान उस वक्त तक स्थगित रहेगा, जब तक सरकार द्वारा यह निर्धारित करने की प्रक्रिया के लिए नियम नहीं बनाए जाते कि कोई व्यक्ति कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है या नहीं।
पीठ ने संशोधित कानून की धारा 23 (मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा की अन्य शर्तें) पर रोक नहीं लगाई, लेकिन अधिकारियों को यह निर्देश दिया कि जहां तक संभव हो, बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से करने का प्रयास किया जाए।
कानून के अनुसार, वक्फ दान की गई उस संपत्ति को कहा जाता है, जो कोई मुस्लिम व्यक्ति धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए करता है, जैसे मस्जिद, स्कूल, अस्पताल या अन्य सार्वजनिक संस्थानों का निर्माण।
पूरे कानून पर रोक का मामला नहीं : पीठ
पीठ ने कहा, ‘पूर्व धारणा हमेशा कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है और हस्तक्षेप केवल दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में किया जा सकता है।... हमें ऐसा नहीं लगता कि पूरे कानून के प्रावधानों पर रोक का कोई मामला बनता है। इसलिए, अधिनियम पर रोक के अनुरोध को खारिज किया जाता है।' पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश अंतरिम प्रकृति के हैं। यह याचिकाकर्ताओं और सरकार को कानून की संवैधानिक वैधता पर अंतिम सुनवाई के दौरान पूर्ण दलील पेश करने से नहीं रोकते।
सरकार और विपक्ष ने किया स्वागत
विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि इसने संशोधित कानून के पीछे छिपी ‘विकृति मंशा' को काफी हद तक नाकाम कर दिया है। सरकार ने भी फैसले का स्वागत किया करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है और अधिनियम के प्रावधान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी हैं। कई मुस्लिम संगठनों ने न्यायालय के आदेश का स्वागत किया। हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निराशा जताई और कहा कि व्यापक संवैधानिक चिंताओं का समाधान नहीं करने के कारण कई प्रावधानों का दुरुपयोग होगा, इस पूरे कानून को ही निरस्त करने की जरूरत है।