Mandi Flood Tragedy मंडी के डेजी गांव में मातम पसरा, उम्मीदें बह गईं
दीपेंद्र मंटा / ट्रिन्यू
सेराज (मंडी), 12 जुलाई
हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के सेराज विधानसभा क्षेत्र में जब कोई कदम रखता है, तो तबाही और ग़म की तस्वीरें साफ़ नज़र आती हैं। हाल ही में आई क्लाउडबर्स्ट और फ्लैशफ्लड ने इस हरे-भरे इलाके को मलबे, मातम और मौन में बदल दिया है।
हर दूसरा चेहरा शोक में डूबा है
गांव में कोई भी ऐसा नहीं बचा, जिसने अपना कोई प्रियजन, घर या खेत न खोया हो। हर नुक्कड़, हर आंगन में कोई बैठा है — कभी आंखों में आंसू लिए, कभी गिरे हुए मकान की ओर निहारते हुए।
डेजी गांव : जहां 11 जिंदगियां एक रात में खत्म हो गईं
30 जून की रात, जब सब सो रहे थे, डेज़ी गांव पर तबाही टूट पड़ी। तेज़ बारिश, फिर अचानक पानी का बहाव और मिट्टी का खिसकना सब कुछ एक साथ हुआ। इंदर सिंह, जो पेशे से दर्ज़ी हैं, उस रात घर पर नहीं थे। जब लौटे, तो उनका सब कुछ खत्म हो चुका था। पत्नी और तीन बेटियां बह चुकी थीं, घर ध्वस्त हो चुका था। उन्होंने कहा कि मेरे अब कुछ नहीं बचा," वे कहते हैं। उनकी आंखों में सूनापन है, आवाज़ में खालीपन। "वो हंसी, वो पुकार... सब इसी मलबे में खो गया है।"
मुकेश की कहानी : आखिरी कॉल और फिर सन्नाटा
इंदर सिंह से कुछ ही दूरी पर मुकेश अपने आंगन के एक कोने में बैठते हैं-अवाक और टूटे हुए। उनके बेटे ने उन्हें थुनाग न जाने की विनती की थी, लेकिन काम के चलते उन्हें जाना पड़ा। पीछे रह गए — तीन साल की बेटी उर्वशी, नौ साल का बेटा सूर्यांश, पत्नी भुवनेश्वरी और माता-पिता। सभी बाढ़ में बह गए। उन्होंने कहा कि "मैंने आख़िरी बार उनकी आवाज़ फोन पर सुनी थी," वे कहते हैं, आंसुओं में डूबी आवाज़ में। "अब घर में सिर्फ़ ख़ामोशी है।"
वो रात: चीखें, अंधेरा और लहरों की दहाड़
गांववालों के लिए वह रात अब भी एक डरावनी याद बन चुकी है। ज़मीन फटी, पहाड़ों से आया पानी सुनामी की तरह बहा, और पूरा गांव उसकी चपेट में आ गया। डेजी गांव में कुल 34 मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं। गांव का सड़क संपर्क पूरी तरह टूट चुका है; राहत टीमें पैदल पहुंच रही हैं।
बड़ा पंचायत: कमल देव ने दो परिजन खोए
बगल के बड़ा पंचायत में कमल देव ने अपने दो परिजन खो दिए। उनका घर पूरी तरह तबाह हो चुका है। वे बताते हैं कि अब हम राहत शिविर में शरण लिए हुए हैं'(
शरण गांव: सब कुछ बह गया, लेकिन जानें बचीं
शरण गांव के 30 से अधिक परिवार भी बाढ़ की चपेट में आए। जान का नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन खेत, घर, मवेशी — सब बह गए। भरत राज ठाकुर, जो उस रात अपने परिवार के साथ घर में थे, बताते हैं: "तेज़ आवाज़ आई... फिर पूरा घर हिल गया। मेरी पत्नी, माता-पिता और तीन बच्चे मलबे में दब गए। किसी तरह पांच को निकाल लिया, लेकिन मेरी बेटी तुनुजा अब तक नहीं मिली।"
मदद आई, लेकिन दर्द बरकरार
प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिए हैं। खाने के पैकेट, दवाइयां और शिविरों की व्यवस्था की जा रही है। लेकिन जिनका सब कुछ बह गया, उनके लिए यह मदद अधूरी लगती है। "सरकार की टीम आई ज़रूर है," एक बुज़ुर्ग कहते हैं, "लेकिन जो दिल से उजड़ गया, वो कैसे बनेगा?"