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Isha Foundation: जग्गी वासुदेव को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कार्यवाही बंद की

पीठ ने कहा कि दोनों महिलाएं बालिग, स्वेच्छा से तथा बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही थीं
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आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव। पीटीआई फ़ाइल फोटो
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नयी दिल्ली, 18 अक्तूबर (भाषा)

Isha Foundation Case: सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की, कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के परिसर में उसकी दो बेटियों को बंधक बनाकर रखे जाने का आरोप लगाते हुए दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कार्यवाही शुक्रवार को बंद कर दी।

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प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और उन्होंने कहा है कि वे स्वेच्छा से तथा बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही थीं। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध करते हुए दायर की जाती है जो लापता है या जिसे अवैध रूप से बंधक बना कर या हिरासत में रखा गया है।

पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने यह भी कहा कि उसके तीन अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में पुलिस ने उसके समक्ष स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से उत्पन्न इन कार्यवाहियों के दायरे का विस्तार करना अनावश्यक होगा। शुरू में याचिका मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने तीन अक्टूबर को तमिलनाडु के कोयंबटूर में फाउंडेशन के आश्रम में दो महिलाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से बंधक बनाकर रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी थी।

हाई कोर्ट के समक्ष दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित करते हुए शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया था कि वह हाई कोर्ट के उस निर्देश के अनुपालन में कोई और कार्रवाई नहीं करे जिसमें उसने पुलिस को इन महिलाओं को कथित रूप से अवैध तरीके से बंधक बनाकर रखने के मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया था।

ईशा फाउंडेशन ने हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसमें उसने कोयंबटूर पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी मामलों का विवरण एकत्र करे और आगे के विचार के लिए उन्हें अदालत के समक्ष पेश करे। सुप्रीम कोर्ट ने इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया।

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