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हाईवे खराब तो टोल के लिए बाध्य नहीं कर सकता एनएचएआई : सुप्रीम कोर्ट

परेशान नागरिकों की ‘दुर्दशा’ को उजागर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अगर किसी राजमार्ग की हालत बहुत खराब है, तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) यात्रियों को टोल देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। टोल...
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परेशान नागरिकों की ‘दुर्दशा’ को उजागर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अगर किसी राजमार्ग की हालत बहुत खराब है, तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) यात्रियों को टोल देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। टोल देने वाली जनता को सड़क तक ‘निर्बाध, सुरक्षित और विनियमित पहुंच’ की मांग करने का अधिकार है।

सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजमार्ग की खराब स्थिति के कारण त्रिशूर जिले के पलियेक्कारा में एनएच-544 पर टोल वसूली को निलंबित करने के केरल हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनएचएआई की अपील को खारिज करते हुए यह बात कही। पीठ में जस्टिस के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि नागरिकों को उन सड़कों पर चलने की आज़ादी दी जाए जिनके इस्तेमाल के लिए वे पहले ही टैक्स चुका चुके हैं और उन्हें नालियों और गड्ढों से गुज़रने के लिए कोई अतिरिक्त भुगतान न करना पड़े।

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पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को सड़क के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में 12 घंटे लगते हैं, तो उसे 150 रुपये क्यों देने चाहिए? जिस सड़क पर एक घंटा लगता है, उसमें 11 घंटे और लग जाते हैं और उन्हें टोल भी देना पड़ता है...।’

18 अगस्त के अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या उसके प्रतिनिधियों द्वारा निर्बाध, सुरक्षित और विनियमित पहुंच सुनिश्चित करने में कोई भी विफलता जनता की वैध अपेक्षाओं का उल्लंघन है और टोल व्यवस्था के मूल आधार को ही कमज़ोर करती है।’ बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर (बीओटी) प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए, शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यह ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ है कि सफल बोलीदाता निर्माण और रखरखाव पर खर्च की गई राशि से कहीं अधिक राशि वसूल लेता है।

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