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हरियाणा : पुलिस और जेल विभाग में वर्दी और बैज की जंग

डीजीपी बोले- जेल अफसर ऊंचे रैंक के बैज पहन रहे, जेल सुपरिटेंडेंट्स बोले-वेतन समानता है असली मुद्दा
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हरियाणा में इन दिनों पुलिस और जेल विभाग के बीच 'स्टार और स्ट्रिप' की जंग छिड़ गई है। मामला वर्दी और कंधों पर लगने वाले बैज का है, लेकिन असल में यह वेतनमान और पदमान्यता की असमानताओं का आईना है। 20 अगस्त को डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने गृह विभाग को पत्र लिखकर आपत्ति जताई कि जेल अधिकारियों को ऐसे बैज दिए गए हैं जो उनके वास्तविक पे स्केल से कहीं ऊपर के दिखते हैं।

डीजीपी के मुताबिक, जेल सुपरिटेंडेंट्स ‘स्टेट एम्ब्लेम और वन स्टार’ पहन रहे हैं, जबकि यह बैज पुलिस विभाग में केवल आईपीएस रैंक के पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को मिलता है। इसी तरह, जेल डिप्टी सुपरिटेंडेंट्स ‘स्टेट एम्ब्लेम’ पहनते हैं, जो पुलिस के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) को मिलता है। पुलिस का कहना है कि सेना और पुलिस दोनों में बैज और प्रतीक हमेशा वेतनमान (पे-स्केल) से जुड़े होते हैं।

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डीजीपी के पत्र के बाद जेल सुपरिटेंडेंट्स ने 28 अगस्त को गृह एवं जेल विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा को प्रेजेंटेशन सौंपा। इसमें कहा गया कि पुलिस की आपत्तियां तथ्यहीन हैं। वर्दी रैंक के आधार पर तय होती है, न कि वेतनमान से। जेल सुपरिटेंडेंट्स क्लास-। अधिकारी हैं और जेल प्रमुख के रूप में वही भूमिका निभाते हैं, जो जिले में पुलिस अधीक्षक निभाते हैं। वहीं, डीएसपी तथा जेल विभाग में डिप्टी और असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट क्लास-।। अधिकारी होते हैं। पुलिस और जेल अफिसरों के बैज पर अलग-अलग अक्षर (एचपीएस, हपू बनाम एचजे, एचजेएस) लिखे हैं, जिससे पहचान में कोई भ्रम नहीं हो सकता। उनका तर्क है कि असली समस्या वेतन असमानता की है। अगर तुलना करनी ही है तो बैज से नहीं, बल्कि वेतन समानता (पे-पैरिटी) से की जाए।

यह है वेतनमान का फर्क

जेल अधिकारियों ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए पुलिस और जेल विभाग के पे स्केल की तुलना बताई।

- पुलिस डीएसपी (एफपीएल-10): शुरुआती वेतन 56100

- जेल सुपरिटेंडेंट (एफपीएल -09): शुरुआती वेतन 53100

- पुलिस इंस्पेक्टर (एफपीएल-07) : शुरुआती वेतन 44900

- जेल डिप्टी/असिस्टेंट/सब-असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट (एफपीएल -06) : शुरुआती वेतन 35400

- पुलिस कांस्टेबल (एफपीएल -02) : शुरुआती वेतन 19900

- जेल वार्डर (एफपीएल -02) : शुरुआती वेतन 19900 रुपये

(यानी बैज ऊंचे स्तर के, लेकिन वेतन नीचे - यह विसंगति विवाद का मूल है)

ये हैं समितियों की सिफारिशें

- जस्टिस एएन मुल्ला कमेटी (ऑल इंडिया कमेटी ऑन जेल रिफॉर्म्स) : जेल स्टाफ को पुलिस के बराबर वेतन और भत्ते मिलें।

- बीपीआरएंडडी (2007 रिपोर्ट) : जेल कर्मचारियों की जिम्मेदारी जटिल और खतरनाक है, वेतन पुलिस के समकक्ष होना चाहिए।

- मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2016 : स्पष्ट कहा गया कि वर्दी पुलिस जैसी हो और वेतन भी पुलिस के बराबर हो।

- जेल अधिकारियों का कहना है कि हरियाणा ने वर्दी तो पुलिस जैसी कर दी, लेकिन वेतन बराबर नहीं किया।

जेल स्टाफ की दलील

जेल अधिकारियों ने अपनी ‘प्रेयर’ में कहा कि उनका काम केवल कैदियों की निगरानी तक सीमित नहीं है। वे रोजाना खतरनाक अपराधियों और गैंगस्टरों से निपटते हैं। ऐसे में उनका काम पुलिस से कम जोखिम भरा नहीं है। उनका कहना है कि अगर वेतन समानता नहीं दी गई तो योग्य लोग इस विभाग से दूर होंगे और सुधारात्मक तंत्र कमजोर होगा।

नया पेंच : पुलिस अफसरों की जेलों में तैनाती

इस विवाद को और भड़काने वाला कदम सरकार का हालिया फैसला है। गुरुग्राम की भोंडसी और यमुनानगर जेल में डीएसपी रैंक के पुलिस अधिकारियों को जेल सुपरिटेंडेंट बनाकर भेजा गया है। इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में पुलिस और जेल विभाग के बीच सीधा टकराव तेज हो सकता है।

सरकार के सामने चुनौती

अब पूरा मामला सरकार के पाले में है। एक ओर पुलिस विभाग कह रहा है कि बैज और वर्दी पे स्केल से मेल खाने चाहिए। जेल अधिकारी वेतन समानता और पदमान्यता की मांग कर रहे हैं। इस अनुशासन से छेड़छाड़ की गई तो यूनिफॉर्म्ड फोर्सेज में ‘रैंक पैरिटी’ खत्म होगी और आपात स्थितियों में कमांड की एकरूपता बिगड़ सकती है। बहरहाल, हरियाणा सरकार अब एक कठिन मोड़ पर खड़ी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार पुलिस की वरिष्ठता की दलील मानेगी या फिर जेल विभाग के बराबरी के हक को प्राथमिकता देगी। फैसला चाहे जो भी हो, इसका असर सिर्फ बैज और वर्दी तक सीमित नहीं रहेगा।

 

 

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