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उत्तराखंड में एक और ‘सुंदरलाल बहुगुणा’ द्वारिका प्रसाद, विदेशों तक फैला बीज बमों का अनूठा अभियान

बौछार बमों की मगर जंगल में मंगल

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पर्यावरण प्रहरियों को बीज बम की जानकारी देते द्वारिका प्रसाद सेमवाल। -निस
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राजेश डोबरियाल/निस

देहरादून, 17 जुलाई

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पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन के लिए दुनिया को चिपको आंदोलन और मैती आंदोलन देने वाले उत्तराखंड से एक और आंदोलन खड़ा हुआ है। यह है बीज बम अभियान। इसका उद्देश्य है पर्यावरण संतुलित करना और मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना। इस बीज बम सप्ताह से आज एक लाख से ज़्यादा लोग जुड़ चुके हैं और यह देश के 18 राज्यों के साथ ही 4 अन्य देशों तक पहुंच गया है। इस बार सप्ताह के दौरान विभिन्न सब्जियों-कद्दू, तोरी, लोकी, मक्का, शहतूत आदि के 2 लाख से अधिक बीज बम जंगलों में डाले गए। उत्तराखंड के 350 ग्राम पंचायत, 250 स्वैच्छिक संगठनों के लोग इसमें शामिल हुए। गंगा-यमुना के मायके उत्तरकाशी के रहने वाले द्वारिका प्रसाद सेमवाल इस अभियान के प्रणेता हैं। हिमालयन पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) के बैनर तले विधिवत 2019 से यह बीज बम सप्ताह मनाया जा रहा है।

2017 में कमद के राजकीय इंटर कॉलेज के 100 छात्र-छात्राओं को साथ लेकर सेमवाल और उनके 4 साथियों ने जंगलों में बीज बम फेंकने का अभियान शुरू किया था। 2018 के अंत तक इसका नाम तय हुआ-बीज बम। 2019 में जाड़ी ने तय किया कि बीज बम को सप्ताह के रूप में मनाया जाए और उस साल 25 से 31 जुलाई तक यह सप्ताह मनाया गया। 2020 से इसके लिए 9 से 15 जुलाई की तारीख निर्धारित कर दी गई और तब से यह सप्ताह इन्हीं दिनों में मनाया जा रहा है। सेमवाल बताते हैं कि इस साल नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ ही दक्षिण अफ़्रीका के केपटाउन से भी कुछ संगठनों ने इस अभियान में हिस्सा लिया और वर्चुअली अपने अनुभव साझा किए।

उत्तराखंड के जंगलो में बीज बम डालते लोग।-निस

पाठ्यक्रम में किया जायेगा शामिल : इस साल खास बात यह रही कि उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत ने बीज बम और गढ़ भोज को पाठ्यक्रम में शामिल करने के जाड़ी के आग्रह को स्वीकार किया और इसे जल्द लागू करने का आश्वासन दिया। सेमवाल कहते हैं कि बीज बम अभियान अब सप्ताह से भी आगे निकल गया है। अब विभिन्न विभागों, संगठनों और शिक्षण संस्थानों के लोग वर्ष भर अपनी सुविधा व जलवायु के अनुसार बीज बम बना कर जंगलों में डालते हैं।

क्या होता है बीज बम :  सेमवाल बताते हैं कि मिट्टी और गोबर को पानी के साथ मिलाकर एक गोला बना लिया जाता है जिसमें स्थानीय मिट्टी और जलवायु में होने वाले कुछ बीज डाल दिए जाते हैं। इसे बम की तरह जंगल में फेंक दिया जाता है ताकि यह पनप सके। मुख्यतः गांवों से जंगल को जाने वाले रास्तों से इन्हें फेंका जाता है ताकि जानवरों को वहीं खाना मिल जाए. इन बीज बमों में कद्दू, लौकी, तोरी जैसे तुरंत पनपने वाली सब्ज़ियो व फलों के बीच डाले जाते हैं ताकि ये जल्दी तैयार हों और जानवरों को खाने के लिए भटकना न पड़े। सेमवाल का मानना है कि जब बंदरों, हिरनों को गांव से बाहर खाना मिल जाएगा तो वे गांवों में नहीं आएंगे। वे नहीं आएंगे तो तेंदुए, बाघ को भी शिकार जंगल में ही मिल जाएगा और वे भी आबादी में नहीं आएंगे। उन्हें उम्मीद है कि इससे एक दिन मानव-वन्यजीव संघर्ष खत्म करने में मदद मिलेगी।

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