अभिषेक ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’, सुमित बने डिफेंस के हीरो
अभिषेक की कहानी जिद और जुनून की मिसाल है। पांचवी कक्षा में सीआरजेड विद्यालय छात्रावास से हॉकी खेलना शुरू करने वाले अभिषेक ने बचपन से ही अपने तेवर दिखाए। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तीन स्टिक तोड़ने वाले इस खिलाड़ी को देखकर लोगों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह लड़का एक दिन देश का नाम रोशन करेगा।
ग्यारह साल की उम्र में गंभीर चोट लगी, परिवार ने हॉकी छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कोच शमशेर ने परिवार को मनाया और अभिषेक फिर मैदान पर लौटे। 2016 में जूनियर शिविर से बाहर रहना उनके लिए बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने उसे अपनी ताकत बनाया।
ढाबों की धूल से ओलंपिक पदक तक
सोनीपत के ही गांव कुराड़ के सुमित कुमार की यात्रा और भी प्रेरक है। बचपन में भाइयों जयसिंह और अमित के साथ ढाबों पर सफाई करते हुए उन्होंने खेल का सपना देखा। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि हॉकी के जूते भी खरीदना मुश्किल था। ऐसे में गांव के मास्टर नरेश ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
जब सुमित का खेल निखरने लगा, तो भाइयों ने दिहाड़ी मजदूरी शुरू कर दी ताकि छोटा भाई पूरी तरह खेल पर ध्यान दे सके। टोक्यो ओलंपिक में सुमित ने टीम इंडिया के लिए पदक जीतकर पूरे देश को गर्व महसूस कराया। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए 2021 में उन्हें अर्जुन अवार्ड भी मिला।