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सृजन के पथ पर उम्मीदों के युवा

पुस्तक समीक्षा

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डॉ. कुमुद रामानन्द बंसल के निर्देशन में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पहली बार आयोजित लेखन कार्यशालाओं ने युवा पीढ़ी में सृजनात्मकता की लौ जगाई। विधा-विशेषज्ञों द्वारा लेखन-कौशल की बारीकियां सिखाने के इस प्रयास का परिणामस्वरूप यह पुस्तक एक ‘प्रवाह’ के रूप में अस्तित्व में आई, जिसमें तेरह नवलेखकों की विविध विधाओं—गद्य और पद्य—में रचनाएं संकलित हैं।

पद्य में ग़ज़ल, दोहे, माहिया छंद, क्षणिकाएं तथा गद्य में संस्मरण, कहानी एवं लघुकथाएं हैं। इन रचनाओं में युवा पीढ़ी की साहित्य सृजन के प्रति ललक को देखा जा सकता है। इनमें युवा मन के उद्गार, संवेदनाएं तथा विचार उजागर हुए हैं।

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बानगी के तौर पर आनंद रोहिल्ला का यह हाइकु—‘रोटी नयन/ मुस्कुराता चेहरा/ यह दर्द कैसा?’

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‘विपिन कुमार’ का ललित छंद—‘मौसम ने अब करवट ली है, सबको उठना होगा/ धूल भरे बादल हैं जितने, सबको छंटना होगा/ चलो उठो, आवाज़ उठाओ, अपना कर्म निभाओ/ अब मत को हथियार बनाकर, रण में लड़ना होगा।’

पूनम सैनी—‘गिरना और गिरकर टूट जाना/ लाज़िमी है बहुत/ रुकना मत, समेटना खुद को/ मंज़िल कभी दूर नहीं होती।’

हिमांशी धीमान—‘तुम्हारे दिल में थोड़ी जगह काफी है/ कब कहा मेरे नाम आसमान कर दो।’

सरल, सहज भाषा, शिल्प और शैली में अभिव्यक्त ये रचनाएं पाठकों के दिल पर अवश्य दस्तक देंगी। निरंतर अभ्यास से इनकी रचनाएं और भी परिपक्व होंगी। इसे भविष्य में भी जारी रखना चाहिए।

पुस्तक : प्रवाह संपादक : डॉ. कुमुद रामानन्द बंसल प्रकाशक : अथर्व ग्रुप प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 112 मूल्य : ₹रु. 250.

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