तुम्हारे मुस्कराने से
यह कायनात चलती है।
Advertisement
सूरज उगता है,
कोंपलें मुस्कराती हैं,
इठलाती हैं कलियां और
नदियां बल खा कर
बहती हैं।
तुम्हारे प्रेम से पंछी
चहचहाते हैं।
झरने झर-झर बहते हैं,
भंवरे फूलों पर
मंडराते हैं, और
आकाश में चांद-तारे
टिमटिमाते हैं।
तुम्हारे समर्पण से
बादल बरस जाते हैं।
नदियां सागर में
मिल जाती हैं, और
फल-फूलों से लदी डाली
सब अर्पण कर
पुनः खाली हो जाती है।
तुम्हारी बातों से
रहता है क्रियाशील
यह जीवन-संसार, और
तुम्हारे शब्दों से
झरता निस्वार्थ प्यार,
लाता है जीवन में बहार,
समझाता है
जीवन-मृत्यु का सार।
नारी तुम्हारे धैर्य से
ही टिका है सत्य
इस मिथ्या संसार में।
तुमसे धरा गतिवान है,
आकाश सब पर
छत बन विद्यमान है, और
तुम्हारा गर्भ ही
इस सृष्टि का आधार है।
Advertisement
×