राजकिशन नैन
वयोवृद्ध लेखक डॉ. सत्यपाल शर्मा ने अब से चालीस साल पूर्व महाभारत युगीन युद्ध तंत्र को लेकर प्रस्तुत किए गए अपने शोध प्रबंध की सामग्री के आधार पर ‘अथातो युद्ध जिज्ञासा’ नाम से जो हालिया कृति रची है, उसमें उन्होंने विश्व युद्ध इतिहास के अलावा, युद्ध : अभिशाप या वरदान, युद्ध क्यों? श्रीकृष्ण का युद्ध दर्शन, युद्ध शकुन, युद्ध ध्वनियों, युद्ध वाद्यों एवं युद्ध पताकाओं का महत्व और महाभारत युद्ध तथा मानवीय मूल्य जैसे सर्वग्राह्य तथा सार्वकालिक विषयों को संजीदगी से उठाया है। पौराणिक वाङ्मय में बारह हजार वर्ष तक चलने वाले देवासुर संग्राम का बारम्बार उल्लेख हुआ है। इससे जाहिर है कि युद्ध निरंतर चलता रहता है। शैतानी ताकतें भी सफा-ए-हस्ती से हमेशा के लिए नेस्त-ओ-नाबूद नहीं हुई। शैतान हमारे भीतर बसता है और यह नाना रूपों में रह-रहकर सिर उठाता रहता है। मानवता की रक्षा के लिए इसके साथ लड़ना पड़ता है। हम पहले भी इसके साथ लड़े हैं और आज भी लड़ रहे हैं।
युद्धशास्त्रविदों का दावा है कि युद्ध स्वत: संभव घटना न होकर मानव निर्मित उद्योग है। सत्ता के भूखे दायित्वहीन नेता, शस्त्रास्त्र बनाने वाले और इनके व्यापार से धनी बनने वाले देश युद्ध को एक सुअवसर के रूप में लेते हैं। दशकों से चले आ रहे आतंकवाद ने खुले युद्ध की अपेक्षा कई गुना ज्यादा लोगों की बलि ली है। युद्ध नि:सदेह मानव समाज में घटने वाली एक भयंकरतम् घटना है। हजारों-लाखों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं। घर, खेत, गांव व नगर उजड़ जाते हैं। स्त्रियां अनाथ हो जाती हैं। बच्चे बेघर और बेसहारा हो जाते हैं। सारी सामाजिक मर्यादाएं एवं व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाती हैं। उन्नति के पथ पर अग्रसर देश दशकों पीछे चले जाते हैं। यद्यपि युद्ध से प्राप्त विजय को सबसे गहि और निकृष्ट माना गया है। हम नहीं लड़ेंगे तो कोई दूसरा हम पर युद्ध थोप देगा। युद्ध हमारे जीवन का अटूट और अविभाज्य अंग है।
महाभारतकार ने युद्ध को देव की लीला कहा है। महाभारत में स्पष्ट कहा गया है कि अन्याय का बदला लेने के अंतिम उपाय के रूप में युद्ध को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। वेदव्यास का उद्बोधन है ‘युद्धाय युज्यस्व।’ संकट की घड़ियों में हमें वही धर्म बचाता है, जिसकी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को शिक्षा दी है। श्रीकृष्ण का कथन है कि ‘युद्ध लड़ना क्षत्रिय का धर्म है।’ विदुर ने युद्ध को वंशोधार और स्वर्ग प्राप्ति का एक बड़ा साधन बताया है। भीष्म ने कहा है कि ‘युद्ध खेत की निराई के समान होता है। यह धर्म का रक्षक व हमारा हितु है।’ विदुला ने यह कहकर अपने पुत्र को चेताया है कि ‘संसार की कोई भी नारी ऐसे पुत्र को जन्म न दे जो उत्साहहीन, निवीर्य और शत्रु को सुख देने वाला हो।’ मनु महाराज ने भी शत्रु को धान में उगने वाले घास-फूस के समान बताते हुए उसे नित्य उखाड़ते रहने का निर्देश दिया है।
पुस्तक : अथातो युद्ध जिज्ञासा लेखक : डॉ. सत्यपाल शर्मा प्रकाशक : समाज धर्म प्रकाशन, महतपुर, ऊना पृष्ठ : 289 मूल्य : रु. 600.