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स्वतंत्रता संग्राम में काशी के रणबांकुरे

पुस्तक समीक्षा
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प्रो. रचना शर्मा की पुस्तक ‘आज़ादी के रणबांकुरे और काशी’ स्वतंत्रता आंदोलन में काशी की भूमिका को इंगित करती है। काशी, जिसे मुख्यतः धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाता है, और उसी पक्ष पर अधिक बल भी दिया जाता है।

पुस्तक स्वतंत्रता आन्दोलन में काशी के शहीदों, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के शहीदों, फांसी की सजा पाने वाले क्रांतिकारियों, आजीवन कारावास की सजा भुगतने वालों और वाराणसी के भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और योगदान पर प्रकाश डालती है। कुल मिलाकर 112 शहीदों तथा स्वतंत्रता सेनानियों के विवरण प्रस्तुत किए गए हैं।

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सर्वविदित है कि अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा राजा और नवाबों से की गई संधियां समय और आवश्यकता के अनुसार बदल दी जाती थीं। पुस्तक की शुरुआत 1781 में यहां के राजा चेतसिंह के किले में हुए विद्रोह से होती है, जब उन्होंने अंग्रेज़ गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स की नाजायज़ आर्थिक मांग को मानने से इनकार कर दिया। वर्ष 1778 में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच चल रहे युद्ध की भरपाई के लिए राजा से बार-बार अतिरिक्त राशि की मांग की जाती रही। अंततः राजा ने एक करोड़ रुपये की मांग नहीं मानी, तो रेजिडेंट ने कई इल्ज़ाम लगाकर एक लंबा पत्र भेजा और मांगों की सूची के साथ गिरफ्तारी का आदेश भी जारी कर दिया।

जब बनारसवासियों को यह पता चला कि कंपनी राजा को गिरफ़्तार करने जा रही है, तो वे लाठियों और तलवारों के साथ किले की शिवाला में इकट्ठा हो गए। सशस्त्र संघर्ष हुआ और गवर्नर जनरल तथा उसका अमला भाग खड़ा हुआ।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, बंगाली टोला, क्वींस कॉलेज, एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज या संस्कृत महाविद्यालय — इन सभी ने शिक्षा के साथ-साथ देशभक्ति और शौर्य की भावना जागृत की है। यहां के अध्यापकों और विद्यार्थियों की स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मुस्लिम समाज की ‘रेशमी रुमाल तहरीक’ ने संदेशों के आदान-प्रदान जैसे जोखिम भरे कार्यों को अंजाम देकर आज़ादी की लड़ाई को गति दी।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की योजना-भूमि बन चुके टाउन हॉल की ओर बढ़ते निहत्थे और अहिंसक छात्रों के विशाल जुलूस पर घबराए ब्रिटिश सिपाहियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं और अनेक छात्र घायल हो गए। घायल छात्रों को देखने अस्पताल पहुंचे पंडित मदन मोहन मालवीय से विद्यार्थियों ने कहा— ‘हमने पीठ पर गोलियां नहीं खाई हैं।’

लेखिका ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को ढूंढ़कर उनके अनुभवों और उनकी वर्तमान स्थिति को भी सामने लाने का प्रयास किया है।

पुस्तक : आज़ादी के रणबांकुरे और काशी लेखिका : प्रो. रचना शर्मा प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, नयी दिल्ली पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 249.

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