सरहद के आर-पार की आवाज़ें
राजवंती मान
पुस्तक ‘सरहद के आर-पार : बंटवारा जो बांट न सका’ रमणीक मोहन द्वारा संकलित, अनुवादित और लिप्यांतरित एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी के बीच मानवीय संवेदनाओं, साझी संस्कृति और विरासत की अमिट छाप को सामने लाता है। यह संग्रह दिखाता है कि राजनीतिक सरहदें भले ही ज़मीन बांट सकती हैं, पर इतिहास, स्मृतियां और मानवीय रिश्ते नहीं बंटते।
पुस्तक की शुरुआत निखिल चक्रवर्ती के लेख से होती है, जो 24 अगस्त, 1947 को ‘पीपल्ज एज’ में छपा था। यह लेख विभाजन के दौरान कलकत्ता की स्थिति और आमजन की भावनाओं का सजीव चित्रण करता है। यह प्रत्यक्षदर्शी की संवेदनशील दृष्टि से लिखा गया ऐतिहासिक दस्तावेज है।
उषा और राजमोहन गांधी अपने संस्मरणों में उस समय की बर्बरता के बीच बचे मानवीय रिश्तों की रोशनी दिखाते हैं, जो समाज में भरोसे और सह-अस्तित्व की मिसाल हैं। सलमान रशीद लाहौर के गंगाराम अस्पताल के बहाने उस सेठ गंगाराम को याद करते हैं, जिनकी सोच और कार्य मानवसेवा का प्रतीक थीं।
इश्तियाक़ अहमद विभाजन से पहले की साझा सांस्कृतिक तहजीब को सिनेमा के जरिए रेखांकित करते हैं। वे लाहौर के रंगमंच और कलाकारों जैसे पृथ्वीराज कपूर, सुनील दत्त आदि के साथ जुड़ी यादों को साझा करते हैं और हीर वारिस शाह की गायकी के जादू का उल्लेख करते हैं।
असलम ख़्वाजा लाहौर, कसूर और भिटाई की यादों को भावुक अंदाज में साझा करते हैं। गीत-संगीत के माध्यम से वे उस समय के सौंदर्य को फिर से जीवित करते हैं। नूर ज़हीर अपने आलेख ‘सरहद तोड़ता एक सफर’ में साझा इतिहास और विरासत की बात करते हुए कहती हैं कि सरकारें बदलती हैं, पर आम आदमी की आत्मा और संस्कृति शाश्वत है।
ऋचा नागर अपने बाबा और उनके पाकिस्तानी मित्र शफ़ी मोहम्मद की भावनात्मक मित्रता को साझा करती हैं जो विभाजन के बावजूद कायम रही। तन्वी चौधरी का लेख भी मानवीय भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति है।
यह संकलन विभाजन की विभीषिका के बीच उम्मीद, प्रेम, साझी विरासत और मानवता की बात करता है। यह पुस्तक सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक आत्मा की झलक है जो किसी भी सरहद से परे है। यह स्मृतियों को संजोती, इंसानियत का गान करती एक अमूल्य कृति है।
पुस्तक : सरहद के आर-पार : बंटवारा जो बांट न सका संकलन, अनुवाद, लिप्यंतरण : रमणीक मोहन प्रकाशक : आखर बुक्स, दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु़. 395.