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भारतीय साहित्य की अनकही कहानियां

पुस्तक समीक्षा
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डॉ. सुदर्शन गासो

पुस्तक ‘यादें डॉट कॉम’ अनेक भाषाओं में सिद्धहस्त साहित्यकार डॉ. चंद्र त्रिखा की एक बहुत ही मूल्यवान और अर्थपूर्ण है, जो भारतीय साहित्य और समाज के दिग्गजों के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक हमारे नायकों के जीवन जीने के तरीके, उनके दृष्टिकोण, संघर्ष और आदर्शों से भी अवगत कराती है। डॉ. त्रिखा भारतीय साहित्य में एक सम्मानित शख्सियत माने जाते हैं। देश के विभाजन की त्रासदी को डॉ. त्रिखा ने अपने तन पर झेला है। इसी कारण ‘भारत-पाक विभाजन’ पर उन्होंने बहुत ही प्रामाणिक और मार्मिक शैली में साहित्य रचना की है।

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इस पुस्तक में लेखक ने महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, राहुल सांकृत्यायन, भवानी प्रसाद मिश्र, अटल बिहारी वाजपेयी, फैज अहमद फैज, साहिर लुधियानवी, अमृता प्रीतम, शिव बटालवी, फ़िक्र तौंसवी, देवेन्द्र सत्यार्थी, नागार्जुन जैसे धुरंधरों पर बहुत ही रोचक जानकारी प्रस्तुत की है।

पुस्तक जब पाठक पढ़ने बैठता है, तो वह सांस रोककर पढ़ता चला जाता है। यह पुस्तक नए लेखकों के लिए बहुत प्रेरणादायक है। सभी साहित्यकारों के बारे में लेखक ने इज्जत और सम्मान के साथ लिखा है। पुस्तक पढ़कर हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व महसूस होता है। भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन, संघर्ष, सिद्धांतों और साहित्यिक योगदान के बारे में भी कई नई जानकारी प्रदान की गई है।

ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस पुस्तक का महत्व स्वीकार किया जा सकता है। लेखक ने भारतीय समाज, संस्कृति और साहित्य के महत्वपूर्ण पहलुओं को बहुत ही रोचक शैली में उजागर किया है, जिससे हमारी जानकारी में तो वृद्धि होती है ही, साथ ही हमें साहित्यिक आनंद और रस की अनुभूति भी होती है। इन साहित्यकारों ने कालजयी रचनाओं की रचना की है और शाश्वत जीवन मूल्यों को स्थापित किया है। इन साहित्यकारों ने समय की धारा पर अपने स्वर्णिम हस्ताक्षर किए हैं।

जीवन पथ और साहित्य पथ पर यह रचना बड़े नायकों के जीवन की एक बड़ी यात्रा को प्रस्तुत करती है। इस यात्रा में समाया हुआ है भारतीय समाज, साहित्य और संस्कृति का एक अनमोल खजाना, जिस पर हम सभी गर्व कर सकते हैं।

पुस्तक : यादें डॉट कॉम लेखक : डॉ. चन्द्र त्रिखा प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन प्रा. लि., नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 180.

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