मनमोहन गुप्ता मोनी
सैली बलजीत नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उपन्यास, नाटक, लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, यात्रा संस्मरण आदि कहां-कहां नहीं उन्होंने अपना हाथ आजमाया।
‘यह मुक्तिपथ नहीं’ उनका नवीनतम कहानी संग्रह है। सैली बलजीत की कहानियों की विशेषता यही है कि उनके पात्र आसपास बिखरे दिखाई देते हैं। इन पत्रों की व्यथा अपनी कहानियों में पिरोकर, उनकी तकलीफों को उजागर करने का सैली बलजीत का प्रयास हमेशा रहा है। इन कहानियों के मुख्य पात्र आम आदमी और समाज द्वारा तिरस्कृत लोग भी हैं।
‘यह मुक्तिपथ नहीं’ कहानी में नारी की दैहिक विवशता स्पष्ट दिखाई देती है। इस कर्म को पाप मानते हुए घर की एक महिला के साथ ऐसा संबंध रखने का विरोध करने वाला पुरुष उसी महिला के बार-बार आग्रह से उसका सहगामी बन जाता है। इसका परिवार पर क्या असर पड़ता है, पढ़ने लायक है।
महिलाओं की विवशता का वर्णन सैली बलजीत की कहानियों में स्पष्ट दिखाई देता है। ‘मुखौटे वाले लोगों के बीच’ में भी इसी प्रकार की व्यवस्था दिखाई देती है तो ‘लड़कियां सावधान हो रही हैं’ में मुंबई की एक गरीब परिवार की महिला की विडंबना का खुला चिट्ठा है। इसमें एक महिला जो मछली बेचती है, अपनी बेटियों को अपनी रक्षा करने की सीख तो देती है, अपनी रक्षा करने में नाकाम साबित होती है। संग्रह की सभी कहानियां समाज की विषमताओं की ओर इशारा करती हैं। मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर निष्ठुर स्वभाव भी कुछ कहानियों में है। ‘तुम चांडाल नहीं हो’ में जब मुर्दा गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी में सवार मृत परिवार के बिलखते सदस्यों की अनदेखी कर तेज़ आवाज़ में संगीत सुनता है तो इस पर टिप्पणी भी क्या की जा सकती है? कुल मिलाकर यह संग्रह पठनीय है और भ्रष्ट समाज को आईना दिखाने का काम सैली बलजीत ने बखूबी किया है।
पुस्तक : यह मुक्ति पथ नहीं लेखक : सैली बलजीत प्रकाशक : हंस प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 170 मूल्य : रु. 495.