Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आभासी दुनिया के सत्य और भ्रम

पुस्तक समीक्षा

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

तेजी से बदलती डिजिटल दुनिया में, जहाँ सब कुछ एक क्लिक की दूरी पर है, वहीं इंसान अब एक ‘कृत्रिम आभास’ में जीने लगा है। इस बदलते दौर की जटिल सच्चाइयों को गहराई से समझाने का प्रयास करती है पुस्तक ‘आभासी दुनिया का सच’, जिसका संपादन दिलीप कुमार पांडेय और अतुल कुमार शर्मा ने किया है।

यह किताब सिर्फ इंटरनेट या सोशल मीडिया की चमक तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उस गहराई में उतरती है, जहाँ इंसान अपनी पहचान, संबंधों और भावनाओं के साथ संघर्ष करता है। इसमें देश के 33 लेखकों और विचारकों के आलेख संकलित हैं, जो आभासी जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे फेक न्यूज, डीपफेक, मोबाइल की लत, डिजिटल निजता और रिश्तों में बढ़ती दूरी पर सूक्ष्म दृष्टि डालते हैं।

Advertisement

लेखन शैली सहज, संवेदनशील और प्रभावशाली है। कई लेख पाठक के निजी जीवन से सीधे जुड़ जाते हैं और यह एहसास कराते हैं कि तकनीक ने हमें जोड़ा भी है और कहीं न कहीं तोड़ा भी है।

Advertisement

संपादकों ने विषय चयन और प्रस्तुति में संतुलन बनाए रखा है। कुछ आलेख गहन और चिंतनशील हैं, लेकिन उनकी भाषा इतनी आत्मीय है कि वे पाठक को थकाते नहीं, बल्कि विचार के लिए आमंत्रित करते हैं।

पुस्तक का मूल संदेश है कि तकनीक स्वयं शत्रु नहीं, उसका असंतुलित उपयोग ही विनाशकारी है। यदि हम सीमाएं तय करें, सत्य और भ्रम के बीच अंतर समझें और वास्तविक संबंधों को प्राथमिकता दें, तो यही डिजिटल दुनिया हमारे लिए अवसरों का नया माध्यम बन सकती है।

पुस्तक : आभासी दुनिया का सच लेखक : दिलीप कुमार पांडेय/ अतुल कुमार शर्मा प्रकाशक : आस्था प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 127 मूल्य : रु. 295.

Advertisement
×