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वहां- यहां

कविताएं
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तुम्हारे शहर में बारिश है बहुत,

और यहां बादल

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रो-रोकर चले जाते हैं।

तुम्हारा घर डूबने को है,

और यहां मेरा मन

डूबा जा रहा है।

स्मृतियों के इतिहास बन गए,

अतीत की बातें धुल रही हैं।

मैं उन स्मृतियों की बारिश में

भीग रहा हूं।

बचपन की बारिश में

खूब नहाता, खेला—

बारिश मेरी मां थी।

मां को भय रहता—

कहीं मैं डूब नहीं जाऊं,

रपट नहीं जाऊं।

वह सम्भालकर रखती हमें।

पता नहीं, किस दुःख में मां

समय के दलदल में बदल गई है।

जाने क्या हुआ है आकाश में—

हाथियों के झुंड

बच्चों की तरह रो रहे हैं।

मां गुस्से में है।

अब मैं बाहर कहीं नहीं जाता।

विनम्र फूल की तरह झर रहा हूं,

न जाने किस प्रकोप से डर रहा हूं।

हम अलग मौसम में

तुम बारिश में,

मैं धूप में,

मौसम हमें यों बांटता।

सर्द हवाएं घेरती तुमको,

बादल उड़ते पास में।

कोहरा घेरे जंगल-रास्ते

पेड़ देखते आस में।

निकलो घर से ऑफिस जब भी,

हर फूल मुस्कानें बांटता।

काम बहुत हैं, फिर भी कम हैं—

तुम हंस कर इतना ही कहतीं।

शिकन नहीं चेहरे पर बिल्कुल—

सुंदरता इसमें ही बसती।

कौन करेगा? मुझको ही करना—

समय काम को बांटता।

घर एकाकी, तुम एकाकी

मेरा भी कुछ मन एकाकी।

देखो! ईश्वर कैसे सबको

ऐसे मन से बांटता।

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