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बलिदान की अनकही दास्तान

पुस्तक समीक्षा
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सत्यवीर नाहड़िया

हरियाणा, अपने समृद्ध सैन्य इतिहास और शहादत परंपरा के लिए विख्यात, ऐसी वीरभूमि है जहां हर चप्पे में शहादत की कहानियां छिपी हुई हैं। इन कहानियों में तिरंगे की आन-बान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबांकुरों की अदम्य साहस और बलिदान की गाथाएं हैं। इस संदर्भ में, आलोच्य कृति ‘शहीद कैप्टन दीपक शर्मा’ एक जीवंत दस्तावेज़ है, जिसमें लेखिका आशा खत्री ‘लता’ ने दीपक के जीवन के विविध पहलुओं को सजीव और प्रेरणादायक ढंग से प्रस्तुत किया है।

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कथा कैप्टन दीपक शर्मा की है, जो सोनीपत जिले के बिधलान गांव के निवासी थे। उन्होंने 27 वर्ष की आयु में जम्मू-कश्मीर के अवन्तीपुरा में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। लेखिका ने उनके जन्म से शहादत तक की यात्रा को बेहद संजीदगी से प्रस्तुत किया है। कृति में 26 अध्याय हैं, जिनमें ‘मैं समय हूं,’ ‘सपनों की उड़ान,’ ‘कश्मीर की धरती पर पहला कदम,’ और ‘अंतिम 30 घंटे’ जैसे शीर्षक शामिल हैं। ये शीर्षक उनके जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं और उनकी वीरता और बलिदान की कहानी को स्पष्ट करते हैं।

इस कृति में कथा-साहित्य की भाषा शैली, प्रासंगिक कविताएं और दोहे पाठक को भावविभोर करते हैं। दीपक की शहादत की याद को जीवित रखने के लिए उनके परिवार द्वारा प्रतिवर्ष रक्तदान शिविर और खेलों का आयोजन किया जाता है, जो इस शहादत को और गौरव प्रदान करता है।

कृति में शामिल छायाचित्रों ने इसे और जीवंत बना दिया है। श्वेत-श्याम छायाचित्रों का अपना मौलिक महत्व है, लेकिन यदि कुछ छायाचित्र रंगीन होते, तो यह और आकर्षक हो सकता था।

कुल मिलाकर, यह कृति शहीद कैप्टन दीपक शर्मा के जीवन और बलिदान को समर्पित है। लेखिका ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्द दिए हैं, साथ ही शहीद परिजनों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। यह कृति न केवल शहीदों को सम्मान देती है, बल्कि उनकी स्मृतियों को चिरस्थायी बनाने का प्रयास करती है।

पुस्तक : शहीद कैप्टन दीपक शर्मा रचनाकार : आशा खत्री ‘लता’ प्रकाशक : साहित्यभूमि, नयी दिल्ली पृष्ठ : 119 मूल्य : रु. 395.

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