दोहों की जुबान में समाज का सच
डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ हिंदी साहित्य के बहुआयामी और समर्पित सृजनकर्ता हैं। आपने गीत, ग़ज़ल, कविता, दोहा, क्षणिका, लघुकथा तथा समीक्षा सहित अनेक विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएं दी हैं। एक अनुवादक, समीक्षक और रेडियो वार्ताकार के रूप में भी आपकी ख्याति व्यापक है। आपकी रचनाओं का अनुवाद देश-विदेश की कई भाषाओं में हो चुका है।
रचनाकार के विविध साहित्यिक सम्मान इस बात का प्रमाण हैं कि आपने न केवल रचनात्मकता की मिसाल पेश की है, बल्कि समय के विकट दौर में भी मानवीय मूल्यों और साहित्य के उच्च आदर्शों को दृढ़ता से थामे रखा है। आपने सृजन में सत्य का पल्लू कभी नहीं छोड़ा। यही कारण है कि आपकी रचनाओं में समय की अनेक कड़वी सच्चाइयों को पहचानने और समझने का अवसर मिलता है — वे सच्चाइयां जिन्हें हम आधुनिक जीवन की भागदौड़ में अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' मूलतः एक सजग सामाजिक कवि हैं। वे समाज की विसंगतियों और बुराइयों पर लिखना अपना धर्म मानते हैं। उनके पास न केवल सत्य को कहने का साहस है, बल्कि उसे प्रस्तुत करने की स्पष्ट, धारदार शैली भी है। उनके दोहे पाठक को सोचने पर मजबूर कर देते हैं — कि असहज परिस्थितियों में भी जीवन को कैसे उपयोगी और सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।
कवि के विषयों का दायरा अत्यंत व्यापक है—राजनीति में नैतिक पतन, लालच, नारी की स्थिति, रिश्तों में गिरावट, पाखंड, स्वार्थ और मूल्यहीनता जैसे ज्वलंत विषय उनके दोहों का केंद्रीय तत्व बनते हैं।
कवि ने प्रेम-विवाह के विरोध में खड़ी सामंती मानसिकता और उसके क्रूर रवैये को भी उजागर किया है। साथ ही, ‘लिव-इन’ जैसे संबंधों के सामाजिक दुष्प्रभाव और विवाहेत्तर संबंधों पर भी सटीक प्रहार किया गया है। वे समाज में हो रही अमानवीय घटनाओं पर संवेदनशील दृष्टि रखते हैं, और हर बदलाव को केवल देखने तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उस पर रचनात्मक टिप्पणी भी करते हैं।
डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की रचनाएं न केवल सामाजिक चेतना का उद्घोष करती हैं, बल्कि साहित्य के माध्यम से जनचेतना को भी संबोधित करती हैं।
पुस्तक : कब टूटेंगी चुप्पियां कवि : डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 299.