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समय की छुअन और संवेदनाएं

पुस्तक समीक्षा
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शशि सिंघल

सामाजिक उत्थान की बात करनी हो या समाज में व्याप्त कुरीतियों, गर्त में जाती मानसिकता, नफ़रत, मारकाट या भटकाव की, कविता एक ऐसा माध्यम है, जिससे कवि अपनी व्यथा को सबके समक्ष शालीनता से परोस सकता है। कविता, कथा, आलोचना, संपादन व पत्रकारिता में सक्रिय अविनाश मिश्र का हाल ही में काव्य संग्रह ‘वक्त ज़रूरत’ प्रकाशित हुआ है। इससे पहले इनके तीन काव्य संग्रह, दो उपन्यास, एक आलोचना पुस्तक नवां दशक आ चुके हैं।

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इस काव्य संग्रह में लगभग 115 लघु कविताएं हैं, जो संवेदनशीलता का प्रतीक होने के साथ इस ओर इशारा करती है कि समाज में विकसित नफ़रत की सामूहिक मानसिकता को कविता, प्रेम और सद्भाव से काटा जा सकता है। कविताएं छोटी हैं मगर उनके हर शब्द बहुत कुछ बयान करत हैं।

संग्रह की सभी कविताएं समय की छुअन लिए हुए हैं। इसमें किस्म-किस्म के प्रेम से विहीन, भरपेट भोजन से वंचित, घृणा से धुंधलाते अभागे लोग हैं। कवि अपनी कविता के माध्यम से मैत्री व सद्भाव का हाथ बढ़ाता है। इक्कीसवीं सदी का शोरगुल है मगर पिछले दो दशकों में भाषा, संवेदना और सामूहिकता का क्षरण बहुत तेजी से हुआ है। ऐसे में ये कविताएं हमें असहाय कर देती हैं। वक्त ज़रूरत में दुःख की पीड़ा और उससे मुक्ति की छटपटाहट शुरू से अंत तक है। वह चाहे नई शिक्षा नीति, नई नागरिकता, एक युग, धूल, देश के नाम, एक ही दुःख, अपराध कथा, अशोक सभा हो, सम्मान या फिर संपादन। संग्रह की भाषा सरल और सटीक है जो आमजन तक आसानी से अपनी पहुंच बना लेगी।

पुस्तक : वक्त ज़रूरत कवि : अविनाश मिश्र प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 116 मूल्य : रु. 199.

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