मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

योगी के महामानव बनने की गाथा

पुस्तक समीक्षा
Advertisement

भारत भूषण

एक ऐसी पुस्तक, जिसके हर पन्ने पर ओज एवं तेजस्विता के स्वर उभरते हैं और वे सीधे मन-मस्तिष्क में उत्तरों का पुंज उत्पन्न कर देते हैं, जिससे एक महामानव के बनने की गाथा का अहसास होता है। योगी अरविंद भारतीय जनमानस के ऐसे महान पुरुष हैं, जिनके बगैर भारतीयता के बारे में नहीं सोचा जा सकता। इस पुस्तक का शीर्षक योगी अरविंद-एक महापुरुष की संघर्ष गाथा सही ही है।

Advertisement

ऐसी मान्यता है कि उन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे। उन्हें योगीराज कहा गया और दैवीय आभा से युक्त वे ऐसे महामानव थे, जिन्होंने इसका आभास कराया कि मनुष्य ही ईश्वर है, सिर्फ अपने भीतर झांक कर देखने और अपने को पहचानने की जरूरत है।

राजेन्द्र मोहन भटनागर द्वारा लिखित पुस्तक का पाठन, एक ऐसी यात्रा करना है, जिसका प्रत्येक शब्द ज्ञान और समझ के उस संसार में ले जाता है, जब यह मालूम होता है कि आखिर हमारे पूर्वज इतने महान कैसे बन गए थे। अगर योगी अरविंद जैसे महापुरुष इस धरा पर जन्म नहीं लेते तो पूरी तरह संभव है कि यह अमर भूमि अंग्रेजों की दासता ही झेल रही होती।

इस पुस्तक के माध्यम से ऐसे प्रश्नों का उत्तर जानने का अवसर मिलता है, जो कि सर्वथा योगी अरविंद के जीवन के रहस्य पट खोलते हैं। इनमें अरविंद को कारागार में श्रीकृष्ण के दर्शन क्यों हुए? कैसे क्रांति का मंत्र दाता योग का पर्याय बन गया? यह कैसे सिद्ध किया कि मनुष्य ही ईश्वर की देन है, यदि वह अपने को पहचान सके? पर अपने को वह कैसे पहचाने? यह सभी ऐसे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर खोजते-खोजते पूरा जीवन बीत जाता है, लेकिन फिर भी शायद ही उनका जवाब मिले। हालांकि, योगी अरविंद की इस कथा के जरिये ऐसे संकेत मिलते हैं, जिनके माध्यम से कोई भी उस पथ का अनुगामी हो सकता है, जो कि श्रेष्ठ आध्यात्मिक जीवन में यात्रा की तरफ ले जाती है। इसी पुस्तक में व्याख्यायित है कि जो डरते नहीं, वे पराक्रमी, निष्ठावान और ईश्वर के सबसे नजदीक हैं। मृत्यु का दूसरा नाम ही ईश्वर है।

पुस्तक का आरंभ ऐसा है, जिसके बाद कहानी की लयबद्धता पाठक को जकड़ लेती है और वह उस दौर को अपने सम्मुख पाता है, जो कि योगी अरविंद और उनके समकक्ष महानुभावों ने जिया है।

पुस्तक : योगी अरविंद लेखक : राजेन्द्र मोहन भटनागर प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 366 मूल्य : रु.400.

Advertisement
Show comments