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स्त्री-मन की कथा-व्यथा का कथ्य

पुस्तक समीक्षा
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‘बाकी सब तो माया है’ कहानीकार पराग मांदले का नव प्रकाशित कहानी संग्रह है। इससे पहले पराग मांदले की अन्य विधाओं पर कई पुस्तकों के अलावा दो कहानी संग्रह ‘राजा, कोयल और तन्दूर’ तथा ‘खिलेगा तो जलेगा ख्वाब’ प्रकाशित हो चुके हैं। इनका तीसरा एवं नया कहानी संग्रह ‘बाकी सब तो माया है’ में आठ कहानियां संकलित हैं।

कहानीकार पराग मांदले किसी भी कहानी के विषय को गंभीरता से लेते हुए उसकी तह तक जाकर विषय के केन्द्र-बिन्दु को इस तरह से उठाते हैं कि पाठक सोचने-समझने पर मजबूर हो जाता है। कहानीकार विचारों को भावनाओं के साथ बांधकर एक ऐसा सेतु बनाते हैं कि उत्सुकता की नदी को पार किया जा सके। लेखक वैसे तो गांधीवादी आदर्श से प्रभावित हैं, किंतु कहीं-कहीं अन्याय के खिलाफ लड़ते-लड़ते क्रांतिकारी आक्रोश उत्पन्न होता प्रतीत होता है। यथार्थ में विश्वास रखने वाले पराग मांदले ने इन अधिकतर कहानियों में स्त्री-मन की पीड़ा को उजागर करते हुए स्त्री-मन को एक विस्तृत पलक पर खोलकर रखा है।

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संग्रह की हर कहानी स्त्री के मानसिक संघर्ष की कहानी है, जो हमारे वर्तमान समाज का ही एक हिस्सा है। कहीं स्त्री-मन परिस्थितियों से दबकर रह जाता है तो कहीं दबे मन अपनी बात कहना चाहती है, तो कहीं-कहीं स्त्री-मन आक्रोशित हो उठता है। ‘चाह की गति न्यारी’ कहानी में पति व पुत्र के बीच पनपे आक्रोश के दुष्परिणाम में पिसती नजर आती है। अपने बाप के प्रति पुत्र के मन में उपजे आक्रोश का कारण जन्मजात संस्कार को माना गया है। ‘बाकी सब तो माया है’ कहानी सोशल मीडिया पर पनपी प्रेम कहानी है तो ‘मुकम्मल नहीं खूब सूरत सफर हो’ में त्रिकोण प्रेम की जटिलता है। ‘वस्ल की कोख में खिलता है फूल हिज्र का’ कहानी प्रेम, समाज व राजनीति का संगम है। ‘दूर है मंजिल अभी’ कहानी पुराने विचारों व साधारण तरीके से सहज जीवन जीने वाले पिता व आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित उसके बच्चों के बीच विवाद में फंसी स्त्री की संघर्ष कथा है।

‘शो’ कहानियों ‘रक्तकुण्ड में खिला कंवल इक’, ‘लौटने की आस’, ‘बदलाव’ में भी स्त्री-मन कहीं न कहीं संघर्षों से जूझता नजर आता है। जिस तरह से एक कुम्हार बढ़िया से बढ़िया व उपयोगी मिट्टी को चाक पर रखकर उसे घुमाकर अपने हाथों के स्पर्श से अलग-अलग मिट्टी के बर्तनों को आकर्षक आकार देता है, उसी तरह कहानीकार ने समाज की यथार्थ घटनाओं को विचारों-भावों के मेल से शब्दों में बांधकर अलग-अलग ऐसी कहानियों का रूप दिया है, जिसे पाठक पढ़कर प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। कहानियों की भाषा सरल व सहज है। कुल मिलाकर कहानियां झकझोरने वाली हैं।

पुस्तक : बाक़ी सब तो माया है कहानीकार : पराग मांदले प्रकाशक : लोक भारती प्रकाशन, प्रयागराज पृष्ठ : 190 मूल्य : रु. 299.

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