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आंचलिकता में मिथ और विद्रूपताओं के दंश

पुस्तक समीक्षा
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रवीन्द्र भारती का उपन्यास ‘जगदम्बा’ राजस्थानी परिवेश का सशक्त चित्रण प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास अपिया और गोइन्दा बाबू की अद्भुत कथा के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें अनेक पात्र शामिल हैं और जीवन की विविध समस्याओं को उजागर किया गया है।

पुरन्द्रपुर गांव को एक ऐसे आदर्श गांव के रूप में चित्रित किया गया है, जहां पारंपरिक भाईचारे की भावना जीवंत है।

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चिरई का निरंतर रोदन गांववासियों को परेशान करता है। माना जाता है कि चिरई का रुदन अशुभ का संकेत है। इसका समाधान यही माना जाता है कि ‘डीह बांधी जाए’ और एक बड़ा मेला आयोजित किया जाए, जिसमें हजारों लोग अंधविश्वास के अनुसार नाचें-गाएं और घोड़ों पर सवार होकर डीह को गांधें। और ऐसा ही होता है—चिरई का रोदन बंद हो जाता है और सभी चैन की सांस लेते हैं।

लेकिन तभी कोठरी का द्वार टूटता है और जगदम्बा (यानी खाको की औरत) भाग निकलती है। अजोरे भगत लोगों से अनुरोध करता है कि उसे जाने दें। जगदम्बा को बीमार समझ कर कोठरी में बंद रखा गया था, क्योंकि वह संतानोत्पत्ति में अरुचि दिखाती है। उसका विश्वास है कि स्त्री को भी यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह चाहे तो दांपत्य जीवन अपनाए, चाहे तो नहीं।

बोधा मल्लाह की सहायता से गोइन्दा बाबू उसे ढूंढ़ निकालते हैं। वह अपने घर लौटना चाहती है, लेकिन घर वाले उसे अपनाने को तैयार नहीं— ‘शादी कर दी तो अब कैसा रिश्ता?’ गोइन्दा बाबू उसे उसके मामा के घर छोड़ने कलकत्ता जाते हैं, परंतु रेल में वह गोइन्दा बाबू से हाथ छुड़ाकर उतर जाती है और नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर लेती है।

मूल कथानक के साथ-साथ, उपन्यास में और भी बहुत कुछ समाहित है, जो इसे रोचक और प्रासंगिक बनाता है।

मिशनरियों द्वारा गांव में स्कूल, अस्पताल और जनकल्याण के अन्य कार्य किए गए हैं। क्रिश्चियन जीवनशैली, उनका धर्मप्रचार और लालच देकर गरीबों का धर्मपरिवर्तन— ये सब प्रसंग प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत हुए हैं। फादर फिनिक्स, होहो और सिस्टर जैसे पात्र उपन्यास को जीवंतता प्रदान करते हैं।

बाद में सनातन पार्टी आती है, जो मिशनरियों को अतिक्रमणकारी मानकर कोर्ट-कचहरी का सहारा लेती है और आधी जमीन छुड़वा लेती है। स्कूल और अस्पताल बंद हो जाते हैं।

गोइन्दा बाबू का बेटा चरी, मिशन स्कूल में पढ़ाता है और मिशनरियों का समर्थक है। उसकी कॉलेज की सहपाठी नैना, पटना के एक कॉलेज में पढ़ाती है। चरी को भी पटना में ही कॉलेज में लेक्चररशिप मिल जाती है। दोनों का प्रेम शालीनता से चित्रित किया गया है।

गोइन्दा बाबू और अपिया की एक साथ मृत्यु थोड़ी अटपटी अवश्य लगती है, परंतु यह कथा को एक गहराई और गंभीरता प्रदान करती है।

पुस्तक : जगदम्बा लेखक : रवीन्द्र भारती प्रकाशक : राधाकृष्ण प्राइवेट लिमिटेड, नयी दिल्ली पृष्ठ : 255 मूल्य : रु. 299.

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