मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

निष्काम कर्म के जरिये ईश्वर प्राप्ति का मार्ग

पुस्तक समीक्षा
Advertisement

डॉ. रविदत्त कौशिक

श्रीगोपाल नारसन द्वारा लिखित ‘श्रीमद्भागवतगीता, शिव परमात्मा उवाच’ ग्रंथ में 22 शीर्षकों के माध्यम से गीता के मूलपाठ की गहन और सुबोध व्याख्या की गई है।

Advertisement

प्रारंभिक छह शीर्षक गीता के श्रवण से संबंधित हैं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि गीता का ज्ञान परमात्मा शिव द्वारा प्रदत्त है, जिसे द्वापर युग में संस्कृत में संकलित किया गया।

शेष 16 शीर्षकों में गीता के विभिन्न उपदेशों की सरल एवं व्यावहारिक व्याख्या की गई है, जैसे—आत्मा और परमात्मा, कर्मयोग, पूजा की विधि, स्वाभाविक धर्म, अकर्तृत्व भाव, दान, गीता का युद्ध, आदि। इन उपदेशों के माध्यम से गीता के गूढ़ अर्थों को सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक उसके वास्तविक रहस्यों को समझ सकें।

इसके अतिरिक्त, ग्रंथ में 147 पाठों के माध्यम से गीता के सामाजिक, धार्मिक, व्यावहारिक और आध्यात्मिक पक्षों पर विस्तृत चर्चा की गई है। लेखक ने श्रुति और स्मृति का अंतर स्पष्ट किया है—स्मृति वह है जो हमें बताती है कि क्या करना है, जबकि श्रुति वह है जो भविष्य की जानकारी प्रदान करती है। उदाहरणस्वरूप, जब गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—‘गांडीव उठाओ और युद्ध करो’, तो वह स्मृति का निर्देश है; वहीं, ‘कब क्या होगा’— यह श्रुति का स्वरूप है।

चन्द्रशेखर शास्त्री का लेख ‘सुख-समृद्धि का आधार है गीता’ गीता के व्यावहारिक महत्व को रेखांकित करता है। गीता, वेदों और वेदांगों के ज्ञान को सूत्रबद्ध रूप में प्रस्तुत करती है, जो जीवन के विविध पक्षों को समझने में सहायक है। गीता का मूल संदेश यह है कि निष्काम भाव से किया गया कर्म ही ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग है, और यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि सभी जीवों को उनके कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।

यह ग्रंथ गीता के महत्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझाने का प्रयास करता है, जो उसके कालजयी और शाश्वत स्वरूप की पुष्टि करता है। यह जीवन के प्रत्येक पहलू में गीता के ज्ञान को आत्मसात करने और उसका पालन करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिससे इसकी युगों-युगों तक बनी रहने वाली प्रासंगिकता सिद्ध होती है।

पुस्तक : श्रीमद्भागवतगीता शिव परमात्मा उवाच लेखक : श्रीगोपाल नारसन प्रकाशक : अनंग प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 500.

Advertisement
Show comments